वाराणसी । अंतर विश्वविद्यालय अध्यापक शिक्षा केंद्र (आईयूसीटीई) में 12वें स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में *“विकसित भारत @2047: शिक्षक शिक्षा में नवाचार, भारतीय ज्ञान परम्परा के विशेष संदर्भ में”* विषय पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत मंगलाचरण से हुई, जिसे डॉ. सुनील कुमार त्रिपाठी द्वारा प्रस्तुत किया गया। इसके उपरांत दीप प्रज्वलन एवं माँ सरस्वती, महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी, एवं पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की गई। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. वांगचुक दोर्जी नेगी, कुलपति, केंद्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान, वाराणसी रहे। इस अवसर पर सम्मानित अतिथि के रूप में प्रो. रवि शंकर सिंह, कुलपति, माँ पाटेश्वरी विश्वविद्यालय, बलरामपुर तथा विशिष्ट अतिथि तथा मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. अखिलेश कुमार सिंह, कुलपति, रज्जू भैया विश्वविद्यालय, प्रयागराज रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. प्रेम नारायण सिंह, निदेशक, आईयूसीटीई, वाराणसी ने की। प्रो. आशीष श्रीवास्तव, डीन (शैक्षणिक एवं अनुसंधान) आईयूसीटीई, वाराणसी ने स्वागत उद्बोधन किया। मुख्य अतिथि प्रो. वांगचुक दोर्जी नेगी, कुलपति, केंद्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान, वाराणसी ने कहा कि शिक्षक का सर्वोत्तम गुण उत्तम आचरण और ईमानदारी है। प्रत्येक शिक्षक को अपने विद्यार्थियों के प्रति पूर्णतः ईमानदार होना चाहिए, क्योंकि इससे विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास होता है तथा इस प्रक्रिया में शिक्षक स्वयं भी संतोष, शांति और आनंद की अनुभूति प्राप्त करता है। विशिष्ट अतिथि तथा मुख्य वक्ता प्रो. अखिलेश कुमार सिंह, कुलपति, रज्जू भैया विश्वविद्यालय, प्रयागराज ने अपने संबोधन में कहा कि 20वीं सदी सामान्य बुद्धिमत्ता का युग थी, जबकि 21वीं सदी भावनात्मक बुद्धिमत्ता का युग है। वर्तमान समय में शिक्षक की भूमिका विद्यार्थियों को मार्गदर्शन प्रदान करने वाले एक सुगमकर्ता की है। उन्होंने ‘सीखना कैसे सीखें’ तथा ‘आजीवन अधिगम’ के महत्व पर विशेष बल दिया। सम्मानित अतिथि प्रो. रवि शंकर ने अपने संबोधन में कहा कि विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर निकलना आवश्यक है। उन्होंने यह भी कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता के निरंतर विकास के बावजूद शिक्षक की भूमिका सदैव प्रासंगिक बनी रहेगी। साथ ही उन्होंने शिक्षक शिक्षा के महत्व को भी रेखांकित किया। अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. प्रेम नारायण सिंह, निदेशक, आईयूसीटीई, वाराणसी ने सभी का अभिनंदन करते हुए कहा कि विकसित भारत के निर्माण के लिए ऐसे श्रेष्ठ व्यक्तियों का निर्माण आवश्यक है, जिनका चरित्र भी सुदृढ़ और मूल्यनिष्ठ हो। उनके विचारों ने शिक्षा के माध्यम से चरित्र निर्माण के महत्व को रेखांकित किया। इस अवसर पर “द डिजिटल पेडागॉजी: एजुकेटर्स फॉर टुमॉरो” नामक एक पुस्तक का भी अनावरण किया गया। इस कार्यक्रम की पूर्वसंध्या पर केंद्र के सभी संविदा कर्मचारियों का सम्मान किया गया। इसका कार्यक्रम का समन्वयन डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह, सहायक आचार्य, आईयूसीटीई द्वारा किया गया। इस कार्यक्रम में प्रो. दीनानाथ, प्रो. राजनाथ, प्रो. ओ.पी. चौधरी, प्रो. अजय कुमार सिंह, डॉ. विनोद कुमार सिंह सहित विभिन्न संस्थानों और विश्वविद्यालयों के 100 से अधिक गणमान्य शिक्षाविद् तथा केंद्र के अन्य समस्त संकाय सदस्य एवं कर्मचारी उपस्थित रहे। रविन्द्र गुप्ता 151009219
