वाराणसी । अवलेशपुर स्थित मुनि पब्लिक स्कूल में आज वार्षिकोत्सव का आयोजन हुआ । कार्यक्रम का आरंभ एन सी कर्मकार (पूर्व विभागाध्यक्ष आई आई टी बी एच यू) अनूप कुमार मिश्रा (विभागाध्यक्ष अर्थशास्त्र विभाग डी ए वी पी जी महाविद्यालय) एवं प्रो विनय पाण्डेय पूर्व विभागाध्यक्ष ज्योतिष विभाग एवं मानित व्यवस्थापक विश्वनाथ मंदिर (काशी हिंदू विश्वविद्यालय) के द्वारा दीप प्रज्वलन कर के हुआ । सबसे पहले बच्चों ने गणेश वंदना का कार्यक्रम प्रतुत किया । मुख्य कार्यक्रम निम्नवत थे ।
"सती आत्मदाह" – प्रेम और त्याग की मार्मिक अभिव्यक्ति एक दूसरे के प्रति सम्मान, आज की पीढ़ी का सच्चा आईना (आज के बच्चे का बचपन अब मोबाइल तक ही सीमित रह गया है) शौर्य, देशभक्ति और बलिदान की गौरव गाथा,बच्चों ने फिल्मी गाने पर किया नृत्य, बच्चों ने पिता के प्रति अपने प्यार को गाने पर नृत्य द्वारा प्रदर्शित किया,बच्चों के अपनी प्रस्तुति से भारतीय लोक कला की समृद्ध विरासत को मंच पर बड़ी खूबसूरती से प्रस्तुत किया,बच्चों ने पर्यावरण में प्लास्टिक से होने वाले नुकसान को नाट्य प्रस्तुति द्वारा प्रस्तुत किया और प्लास्टिक का प्रयोग बंद करने के लिए जागरूक किया,वार्षिकोत्सव में गूंजा समानता का संदेश महिला पुरुष का नहीं है भेद भाव क्षमता मायने रखती है। मुनि पब्लिक स्कूल के संस्थापक रवि शंकर तिवारी ने बताया कि इस संस्था का उद्देश्य वैश्विक नागरिक बनाना है जो कि अपने चरित्र से इस पृथ्वी का संरक्षण करेंगे । उन्होंने कहा कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य चरित्र का निर्माण है । वही डॉक्टर, इंजीनियर, साइंटिस्ट या बाकी अपने क्षेत्र के अनुभवी लोग समाज के भलाई का कार्य करते है जिनका व्यक्तिगत चरित्र उत्तम होता है । अतः हम चरित्र और इसके साथ ही शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य, बौद्धिक स्वास्थ्य और भावनात्मक स्वास्थ्य को मजबूत बनाने का प्रयास करते है। प्राथमिक शिक्षा के दौरान ही बच्चों में संवाद कौशलता, नेतृत्व क्षमता और उद्यमशीलता के बीज बोए जाते है । इन बच्चों को विश्व के दूसरे देशों के स्कूल के बच्चों के साथ ऑनलाइन वार्ता कराई जाती है जिससे ये बच्चे वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना पाए । इन बच्चों को जापानी भाषा सिखाई जाती है। साथ ही ए. आई., रोबोटिक्स, कोडिंग, अबाकस, वैदिक मैथ और एक्यूप्रेशर में पारंगत बनाया जाता है । ये बच्चे समाज के समस्याओं को उठाकर उसका निवारण कर पाए इस लिए इन्हें बाल संसदीय व्यवस्था का ज्ञान दिया जाता है जिसके तहत ये बच्चे ही विद्यालय के संचालन में अपनी भागीदारी देते है । ये बच्चे सहअस्तित्व की धारणा ग्रहण करते है ताकि समाज और प्रकृति का ख्याल रख सके । समय समय पर इसरो और अन्य संस्थाओं के वैज्ञानिक, इंजीनियर, डॉक्टर्स आदि विद्यालय में इन बच्चों को अपना समय देते है । इन बच्चों को भारतीय संस्कृति में परिपक्व बनाया जाता है ।। रविन्द्र गुप्ता
