फास्ट न्यूज इंडिया यूपी अयोध्या। अयोध्या धाम के सुप्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय कथा व्यास राधेश जी महाराज ने आज तृतीय दिवस के भगवद् चिंतन में भक्तों के समक्ष आशा, भक्ति और जीवन के आध्यात्मिक स्वरूप पर गहन विचार प्रस्तुत किए। महाराज जी ने कहा कि जीवन में दुख का मुख्य कारण सांसारिक आशाएँ हैं। मनुष्य से आशा रखकर हम स्वयं को दुखी करते हैं, लेकिन प्रभु से की गई आशा कभी दुख नहीं देती। महाराज जी ने शबरी और मातंग ऋषि के प्रसंग का वर्णन करते हुए बताया कि मातंग ऋषि के वचनों ने शबरी के जीवन में प्रभु आगमन की दिव्य आशा जगाई, और यही आशा उनके जीवन का आधार बन गई। उन्होंने कहा कि “प्रभु के आने की आशा ही शबरी का जीवन-सुख थी। भक्तों का मार्गदर्शन करते हुए महाराज जी ने कहा कि संसार के विषय-सुख की आशा दुख का कारण है, जबकि प्रभु की आशा आनंद का स्रोत है। उन्होंने संदेश दिया—आशा एक राम जी से रखो, दूसरी सभी आशाएँ छोड़ दो;नाता एक राम जी से जोड़ो, दूजा नाता तोड़ दो। महाराज जी ने श्रीराम द्वारा माता शबरी को दी गई नवधा भक्ति पर भी प्रकाश डाला, विशेषकर नवम भक्ति— “मम भरोस हिय हर्ष न दीना।” अर्थात् प्रभु पर भरोसा रखने से हृदय में कभी दुख, भय या निराशा नहीं रहती। अंत में महाराज जी ने भक्तों को जीवन में प्रभु भरोसा, सरलता और भक्ति को अपनाने का संदेश दिया। रिपोर्ट विशाल रावत 151019049
