फ़ास्ट न्यूज़ इंडिया यूपी कासगंज। न्याय के दरवाजे भले देर से खुलें, लेकिन सत्य की जीत अंततः होती है। इसी की मिसाल पेश करते हुए अपर सिविल जज (जूनियर डिवीजन) अर्पित त्यागी की अदालत ने 34 साल पुराने भूमि विवाद में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अदालत ने वादी द्वारा दाखिल वादपत्र को साक्ष्यों के अभाव में खारिज कर दिया। फैसले के बाद वास्तविक जमीन मालिक पक्ष में खुशी का माहौल है।
मामला दरियावगंज निवासी ओमवीर सिंह पुत्र हरनाथ सिंह द्वारा वर्ष 1991 में दायर वाद से जुड़ा है। वादी ने दावा किया था कि संबंधित भूमि भगवान शिव के मंदिर की जगह है और इस आधार पर उन्होंने एटा स्थित अपर सिविल जज जूनियर डिवीजन की अदालत में अरुण कुमार मिश्रा के विरुद्ध वाद प्रस्तुत किया था। वादी का कहना था कि भूमि धार्मिक उपयोग की है, जबकि प्रतिवादी पक्ष ने इसे अपनी पैतृक संपत्ति बताते हुए दावा को निराधार ठहराया। 34 साल की लंबी अवधि में वाद की सुनवाई अनेक चरणों से गुजरती रही। दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं ने अपने-अपने साक्ष्य, दस्तावेज और तर्क अदालत में प्रस्तुत किए। लेकिन वादी पक्ष अपने दावे के समर्थन में कोई ठोस, कानूनी, राजस्व अभिलेख अथवा प्रमाण प्रस्तुत करने में असफल रहा। दिनांक 14 नवंबर 2025 को अंतिम सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि वादी का दावा तथ्यों और प्रमाणों के मानक को पूरा नहीं करता। भूमि को मंदिर की बताने संबंधी कोई प्रमाणिक साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किए गए थे। परिणामस्वरूप अदालत ने अरुण कुमार मिश्रा की पैतृक संपत्ति के दावे को सही मानते हुए वादी का वादपत्र खारिज कर दिया। फैसले के बाद अरुण कुमार मिश्रा और उनके परिजनों ने न्यायालय के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि सत्य और न्याय की जीत हुई है। स्थानीय लोगों ने भी निर्णय को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि इससे फर्जी दावों और धार्मिक आधार पर भूमि कब्जे की कोशिशों पर रोक लगेगी। 34 वर्षों तक चले इस मुकदमे के परिणाम ने न्यायिक प्रणाली में विश्वास को और मजबूत किया है। रिपोर्ट मोहित गुप्ता 151022222
