यूपी इटावा। रामलीला मैदान, इटावा जब जीवन यज्ञ बन जाता है, तब हर श्वास अर्पण हो जाती है, हर कर्म आहुति में बदल जाता है, और हर भावना देवताओं के प्रति समर्पण का रूप ले लेती है। ऐसा ही दिव्य दृश्य इन दिनों इष्टिकापुरी में साकार हो रहा है — वह महायज्ञ, जो केवल वेदों के पृष्ठों तक सीमित नहीं, बल्कि आत्मा के अनुभवों में अंकित होने वाला है। कहा जाता है, ऐसे आयोजन सदियों में एक बार होते हैं। जब अनेक पीढ़ियों का पुण्य संचित होकर भाग्य का द्वार खोलता है, तब किसी को यह दुर्लभ अवसर प्राप्त होता है मुझे यह सौभाग्य दूसरी बार प्राप्त हुआ — कन्नौज के महायज्ञ के पश्चात अब इष्टिकापुरी की इस पावन भूमि पर अपने गिलहरी प्रयासों से सेवा करने का अवसर मिला। इस आयोजन की व्यस्तता ने मुझे सिखाया कि तपस्या क्या होती है, त्याग का अर्थ क्या है, और जब मनुष्य स्वयं को यज्ञ में अर्पित कर देता है, तब राष्ट्र और समाज की सेवा स्वतः साधना बन जाती है। बीते सात महीनों में मैंने प्रकृति के अनेक रंग देखे कभी हरे खेतों में आशा खिली, तो कभी मनुष्यों के स्वभावों में अनगिनत छवियाँ झलकीं। कहीं धैर्य का सागर था, कहीं अधीरता की लहरें;कहीं श्रद्धा का दीप जला, तो कहीं संदेह का धुआँ उठा। लेकिन इन सबके बीच जो शाश्वत बना रहा — वह था यज्ञ का भाव। इस भाव ने सिखाया कि जीवन केवल जीने का नहीं, बल्कि अर्पण करने का नाम है। यूपी स्वाहा’ केवल अग्नि में घी डालने का उच्चारण नहीं, बल्कि हर कर्म को ईश्वर के चरणों में समर्पित करने की वाणी है। पूज्य गुरुदेव के सत्संग ने इस समझ को और गहराई दी, और इस यज्ञमय जीवन के अनुभवों ने मेरे भीतर के अंधकार को ज्ञान की आहुति से आलोकित किया। देखे इटावा से राजू की रिपोर्ट 151173861




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