फास्ट न्यूज इंडिया यूपी प्रतापगढ़। रामानुज आश्रम में भगवान श्रीमन्नारायण एवं माता तुलसी का विवाहोत्सव धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर माता तुलसी और शालिग्राम भगवान का विधिवत पूजन अर्चन करने के पश्चात शास्त्रोक्त विधि से वेद मंत्रों के मध्य भगवान का विवाह संपन्न कराने के पश्चात धर्माचार्य ओम प्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुजदास ने कहा कि पूर्व काल में जालंधर नाम का दैत्य जो भगवान के अंश से ही अवतरित हुआ था, जिसकी पत्नी का नाम वृंदा था जो परम तपस्वी भगवान श्रीमन्नारायण की परम भक्त एवं परम तपस्वी तथा पतिव्रता थी। पूर्व काल में राधा जी ने आपको षोडाक्षर मंत्र का आपको उपदेश दिया था। आपने ब्रह्मा जी से कहा कि हमें चतुर्भुज विष्णु नहीं बल्कि दो भुजाधारी भगवान श्री कृष्ण चाहिए। एक बार जालंधर ने दैत्यों के साथ मिलकर के इंद्रलोक पर अधिकार कर लिया। देवता इधर-उधर घूमने लगे यज्ञ इत्यादि बंद हो गए सभी देवता ब्रह्मा जी और शंकर जी को लेकर भगवान नारायण के पास गए भगवान नारायण ने कहा कि मैं उसे नहीं मार सकता हूं। उसकी मृत्यु तो शंकर जी के हाथों ही होगी आप लोग जाकर युद्ध कीजिए दैत्य और देवताओं में बड़ा भयंकर युद्ध हुआ। भगवान को स्मरण करते हुए वृंदा पूजन करती रही इतने में शंखध्वनि और गाजे बाजे की आवाज सुनाई पड़ी। वृंदा ने सोचा युद्ध समाप्त हो गया। भगवान जालंधर के रूप में वृंदा के पास पहुंचे वृंदा प्रसन्न होकर आरती उतारी जैसे ही भगवान को स्पर्श किया। उधर शंकर जी से भयंकर युद्ध जालंधर का हुआ। उसी समय जालंधर का सिर कटकर वृंदा के सामने आकर गिरा वृंदा आश्चर्य में पड़ गई । यह क्या हो रहा है। भगवान अपने चतुर्भुज स्वरूप में आ गये। वृंदा ने कहा आपका हृदय पत्थर के समान है इसलिए आप पत्थर के हो जाओ। भगवान वृंदा के श्राप को स्वीकार किया और कहने लगे कि हे हे वृंदा हम तुम्हारे श्राप को स्वीकार कर रहे हैं। तुम जो कुछ चाहती हो मुझसे मांग लो बृंदा शांत चित्त खड़ी हो गई । भगवान ने कहा तुम तुलसी बनकर के मृत्यु लोक में अवतरित होगी और भारत देश के अंदर गंडकी नदी के दामोदर कुंड में जब लोग तुलसी दल डालेंगे तो हम पत्थर के रूप में शालिग्राम स्वरूप में उन्हें मिलेंगे। तुम मेरे सिर पर चढ़ोगी जब तक तुलसी दल मेरे सिर पर नहीं रखा जाएगा तब तक मेरा सिर दर्द करता रहेगा। कोई कितना भी 56 भोग मुझे परोसेगा लेकिन यदि तुम उसमें नहीं होगी तो हम उसे स्वीकार नहीं करेंगे। मेरा भोग तभी संभव है जब उसमें तुलसी दल होगा। तुम मुझे प्राणों से भी प्रिय हो। द्वापर में तुम्हारे नाम पर स्थित वृंदावन में मैं गोपियों के साथ महारास करूंगा। वृंदा जालंधर के शरीर को लेकर सती हो गई। भगवान वृंदा के प्रेम में इतने आसक्त हो गए कि कई दिनों तक उसकी राख में लोटते रहे।
राजा धर्म ध्वज की पत्नी का नाम माधवी था गंधमादन पर्वत पर बिहार करते हुए लगभग देव वर्ष के अनुसार 100 वर्ष व्यतीत हो गए माधवी के एक शतवर्षीय गर्भधारण के पश्चात कार्तिक पूर्णिमा दिन शुक्रवार के दिन उसके गर्भ से एक दिव्य कन्या उत्पन्न हुई जो माता लक्ष्मी के अंश से अवतरित हुई। जिसका रंग श्याम और सेकसी था ।इसलिए विद्वान पुरुषों ने उसका नाम तुलसी रखा वही तुलसी देवमान के एक लाख वर्ष तक घोर तप किया।30 सहस्त्र वर्षों तक फल और जल का सेवन किया 30 सहस्त्र वर्षों तक केवल पत्राहार किया तथा 40000 वर्षों तक केवल वायु का सेवन करके 10000 वर्षों तक निराहार रहीं। ब्रह्मा जी के वरदान से वृंदा तुलसी बनकर अवतरित हुई। कार्तिक मास में जो मनुष्य तुलसी के एक पत्ते से भी ठाकुर जी की सेवा करता है उसको अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।माता तुलसी के आठ नाम है। वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी पुष्पसारा नंदिनी कृष्णजीवनी एवं तुलसी कार्तिक मास में भगवान श्री विष्णु को जो तुलसी दल अर्पित करता है वह 10 सहस्त्र गोदान का फल प्राप्त करता है।इसमें कोई संदेह नहीं श्रीमद्देवीभागवत के नवम स्कंध के 17वें अध्याय तथा 25वें अध्याय में यह कथा है। इसके पूर्व संत निवास सेनानी ग्राम देवली में माता तुलसी को दीपदान किया गया। कार्यक्रम में मुख्य रूप से आचार्य आलोक ऋषि वंश सुधा ओझा सुभद्रा रामानुज दासी नारायणी रामानुज दासी देवेंद्र प्रकाश ओझा एडवोकेट डॉ विवेक पांडे बद्री प्रसाद मिश्रा श्रीमती ओझा निधि सिंह पूर्व प्रधान, डॉ अवंतिका पांडे इंजीनियर पूजा पांडे श्रीमती शुक्ला कवियत्री कल्पना तिवारी शेषमणि पांडे कनक तिवारी आरविका पांडे उर्फ छोटेलाल सरकार सहित अनेक भक्तगण उपस्थित रहे और पूजन अर्चन किया। रिपोर्ट विशाल रावत 151019049
