इंग्लैंड की प्रतिष्ठित ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में चल रहे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के विश्राम सत्र में काशी के प्रख्यात संत देवेन्द्र जी महाराज ने मुख्य वक्ता के रूप में अपने विचार रखे।
वर्चुअल माध्यम से दिए गए उनके संबोधन ने न केवल ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के विद्वानों को प्रभावित किया, बल्कि पूरी सभा को भारतीय संस्कृति और संस्कृत भाषा की महत्ता से अभिभूत कर दिया।
देवेन्द्र जी महाराज ने कहा कि “संस्कृत केवल एक भाषा नहीं, बल्कि भारत की आत्मा, संस्कृति और विज्ञान की जड़ है।”
उन्होंने बताया कि संस्कृत शब्द ‘सम’ और ‘कृत’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है ‘सम्पूर्ण किया हुआ’।
संस्कृत को उन्होंने “देवभाषा” बताते हुए कहा कि यह विश्व की सबसे प्राचीन, पूर्ण और वैज्ञानिक भाषा है — जिसे आधुनिक कम्प्यूटर भाषा के रूप में भी सबसे उपयुक्त माना गया है।
महाराज ने अपने उद्बोधन में कहा कि संस्कृत भारत को एक सूत्र में जोड़ने वाली भाषा है।
उन्होंने कहा —
“अंग्रेजों को भी यह समझ आ गया था कि भारत की आत्मा को जानना है तो संस्कृत को समझना अनिवार्य है। इसलिए उन्होंने काशी और कोलकाता में संस्कृत विद्यालयों की स्थापना कराई थी।”
देवेन्द्र जी महाराज ने संस्कृत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत पर प्रकाश डालते हुए कहा कि संस्कृत वह भाषा है, जिसमें वेद, पुराण, उपनिषद और हजारों वर्षों की ज्ञान परंपरा सुरक्षित है।
उन्होंने बताया कि भारत की लगभग सभी भाषाओं की जननी संस्कृत है, जो एकता, समरसता और वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना का प्रतीक है।
महाराज ने यह भी कहा कि वर्तमान समय में संस्कृत का उपयोग पूजा-पाठ और अनुष्ठानों तक सीमित रह गया है, जबकि यह आवश्यक है कि इसे व्यवहार, शिक्षा, संवाद और नवाचार की भाषा बनाया जाए।
उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे संस्कृत को आधुनिक जीवन का हिस्सा बनाएं, ताकि यह देवभाषा पुनः भारत की सांस्कृतिक पहचान का गौरव बने।
कार्यक्रम के अंत में उन्होंने कहा —
“संस्कृत केवल शब्दों की भाषा नहीं, बल्कि विचार, संस्कार और विश्व कल्याण की भावना का माध्यम है। जब हम संस्कृत को अपनाएंगे, तभी भारत की सनातन आत्मा पुनः विश्व में गूंजेगी।”
देवेन्द्र जी महाराज के इस सारगर्भित प्रवचन से ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी का सभागार मंत्रमुग्ध हो गया और उपस्थित विद्वानों ने भारतीय संस्कृति के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा व्यक्त की।
