यूपी संतकबीरनगर जिले की नगर पंचायत धर्मसिंहवा के स्थानीय कस्बे में बौद्ध कालीन स्तूप बौद्ध कालीन सभ्यता को समेटे हुए हैं। लेकिन इस स्थल का विकास न होने के कारण उपेक्षा का शिकार हो गया है। अगर बौद्ध स्तूप स्थल का विकसित होता तो बौद्ध स्थल सहित नगर पंचायत धर्मसिंहवा को अलग पहचान मिलती। रोजगार के अवसर भी बढ़ते। यह स्थल पुरातात्विक व पर्यटन के दृष्टिकोंण से काफी महत्वपूर्ण है। यहां पर खुदाई में बौद्धकालीन सभ्यता के अवशेष के मिल चुके हैं। जनप्रतिनिधियों ने बौद्ध स्तूप के विकास के लिए सदन में मामला उठाया था। यहां पर थोड़ा बहुत काम हुआ जो यहां की जरूरतों के अनुसार कुछ भी नहीं है। जिले के धर्मसिंहवा कस्बे के किनारे की तरफ बौद्धकालीन स्तूप स्थित है। बौद्धकालीन सभ्यता के अवशेष और पर्यटना की अपार सम्भावानाएं समेटे धर्मसिहवा कस्बे की पहचान से जुड़ा यह स्तूप विभागीय उदासीनता के कारण दम तोड़ता नजर आ रहा है। कुछ साल पहले बारिश में ध्वस्त हुए स्तूप का संरक्षण तो कर दिया गया, लेकिन नगर पंचायत कर्मियों द्वारा इसकी सफाई तक नहीं करवाई जाती है। मान्यता के अनुसार धर्मसिंहवा कस्बे का पुराना नाम धम्मासिंहा और धम्मसंघ हुआ करता था जो बदल कर धर्मसिंहवा हो गया है। यहां बौद्ध भिक्षुओं का निवास होने के साथ ही बैठकें हुआ करती थी। बौद्ध संघ के निकट ही एक पोखरा भी स्थित है। बताते हैं कि कुछ दशक पहले तक यहां आने वाले बौद्ध भिक्षु स्नान करते थे। लगभग सौ फिट ऊंचा है बौद्ध स्तूप धर्मसिहवा में बौद्ध कालीन सभ्यता को समेटे हुए जो बौद्ध स्तूप है, उसकी ऊंचाई लगभग सौ फिट है। इसकी देखरेख के अभाव में वर्ष 2019 में बरसात होने से इसका ऊपरी हिस्सा टूट कर गिर गया था। इसके बाद पुरातत्व विभाग द्वारा इसके ऊपर से ईंट लगाकर उसको सुरक्षित कर दिया गया है। जनप्रतिनिधियों ने स्तूप के विकास के लिए सदन में उठाई थी आवाज पूर्व सांसद अष्टभुजा शुक्ल और पूर्व सांसद स्वर्गीय शरद त्रिपाठी ने धर्मसिंहवा में स्थित बौद्ध स्तूप के विकास के लिए लोक सभा के सदन में आवाज उठाई थी। पूर्व सांसद स्वर्गीय शरद त्रिपाठी ने केन्द्र सरकार को पत्र लिखकर इस स्थल को विकसित करने की मांग भी की थी। पूर्व विधायक राकेश सिंह बघेल ने भी बौद्ध स्तूप और स्थल को विकसित करने के लिए पत्र लिखा था। इसके पुरातत्व विभाग जागा तथा कुछ काम हुआ लेकिन इसके बाद ठंडे बस्ते में चला गया। वर्ष 2019 में बौद्ध स्तूप के विकास के लिए यह कार्य था प्रस्तावित जनप्रतिनिधियों के बार बार शासन स्तर पर पत्राचार करने के बाद पुरातत्व विभाग जागा था और वर्ष 2019 में तत्कालीन विधायक राकेश सिंह बघेल ने पुरातत्व विभाग के अधिकारियों के साथ स्थल का निरीक्षण किया था। विभाग द्वारा स्थल के विकास के लिए जो खाका तैयार किया था उसमें बौद्ध स्तूप को सुरक्षित करने के लिए उसके चारों तरफ बाउंड्रीवाल का निर्माण,चारो तरफ स्ट्रीट लाइट लगाना, परिसर में ही संग्रहालय का निर्माण होना था जिसमें बौद्ध कालीन सभ्यता और धर्मसिहवा में मिले अवशेषों को सुरक्षित किया जाना था।इसको लेकर 48 लाख रूपये खर्च भी हुआ था।लेकिन विभाग द्वारा एक तरफ से बाउंड्रीवाल लगाकर छोड़ दिया गया है।परिसर में आधा इंटरलाकिंग करवाया गया है।लाईट के नाम पर कुछ नहीं है। बौद्ध स्तूप को ऊपर से सुरक्षित कर दिया गया है। यहां के विकास से पर्यटन की बनेंगी सम्भावनाएं धर्मसिंहवा कस्बे में स्थित बौद्ध स्तूप के विकास होने से यहां पर्यटन की सम्भावनाएं बढ़ जाएंगी। पहले बौद्ध भिक्षु यहां दर्शन के लिए आते थे लेकिन अब इनका आना कम हो गया है। इसके विकास के प्रशासन और सरकार को उचित कदम उठाना की जरूरत है। यहां पर आने वाले पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी तो रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे। कभी पोखरे में बौद्ध भिक्षु करते थे स्नान, आज है बदहाली का शिकार बौद्ध स्तूप के बगल में एक बड़ा सा तालाब है। लोगो का मानना है कि यह तालाब आज तक कभी नहीं सूखा है। पश्चिम कोने पर एक कुआं भी है। इस पोखरे का पानी कभी इतना स्वच्छ होता था कि यहां आने वाले बौद्ध भिक्षु इसमें स्नान करते थे। देखरेख के अभाव में यह तालाब बदहाल हो गया है। तालाब में जलीय वनस्पति, जलकुंभी आदि भर गई हैं। इसकी सफाई नहीं होती है। गंदगी के चलते इसकी हालत ऐसी हो गई है कि स्नान करना तो दूर अब लोम पैर भी डालना मुनासिब नहीं समझते हैं। गौतम बुद्ध के गृह त्याग के समय से जुड़ा है स्थल पुरातत्व विभाग के सर्वे में ऐसी जानकारी मिली है कि बौद्ध स्तूप भगवान बुद्ध से जुड़ा हुआ है। आसपास के जानकारों की मानें तो भगवान बुद्ध जब सत्य की खोज के लिए घर छोड़कर निकले थे तो उस समय की अचरावती नदी (वर्तमान में बूढ़ी राप्ती) को पार करके सबसे पहले धर्मसिंहवा पहुंचे थे। बौद्ध स्तूप के बगल में स्थित पोखरे में स्नान किए थे। इसके बाद आगे की यात्रा पर निकले थे। 2500 वर्षों से भी पुराना है धर्मसिहवा का बौद्ध स्तूप सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर डाक्टर शरदेन्दु त्रिपाठी ने बताया कि बौद्ध स्तूप एवं उससे आसपास के लगभग एक किमी की दूरी के क्षेत्र में खेतों में घूम-घूमकर पुरातत्व विभाग की टीम के द्वारा जानकारी ली गई थी। यहां की खुदाई व मिट्टी के क्षरण से निकले जो अवशेष मिले हैं वे लगभग 2500 वर्ष पुराने हैं। यदि धर्मसिंहवा की खुदाई कराई जाय तो यहां दस हजार वर्ष पुरानी सभ्यता मिल सकती है। यहां मध्य पाषाण काल के अवशेष मिल सकते हैं। दशकों पहले पुरातत्व विभाग द्वारा जब यहां थोड़ा बहुत खुदाई की गई थी तब 27 सामान मिले थे जिसे विभाग द्वारा लखनऊ संग्रहालय में रखवा दिया गया है। प्रोफेसर डाक्टर शरदेन्दु त्रिपाठी ने बताया कि जिसके बारे में पुरातत्व विभाग को जानकारी दी थी। पुरातत्व विभाग ने बौद्ध स्तूप के बारे में और जानकारी मांगी थी। बौद्ध स्तूप व उसके अगल बगल के क्षेत्रों के बारे में जानकारी लेकर पूरा खाका तैयार करके भेजा गया था। सभासद यशोदा देवी ने कहा कि मेरे वार्ड में बौद्ध स्तूप स्थित है। जहां पर कभी बौद्ध भिक्षु भी आते थे। इसके विकास के लिए हम लगातार प्रयासरत हैं। इस स्थल का विकास हो जाने से नगर पंचायत के साथ साथ अगल बगल के गांव का विकास होगा। लोगों को रोजगार मिलेगा। विधायक अनिल त्रिपाठी ने कहा कि नगर पंचायत धर्मसिंहवा के बौद्ध स्तूप और पोखरे के विकास को लेकर मुख्यमंत्री को पत्र सौंपा हूं। पांच करोड़ तक धन स्वीकृति कराने का आग्रह किया है। बौद्ध स्तूप हम सबके आस्था का केंद्र है। उसको विकसित करने के लिए हम तत्पर हैं। बौद्ध स्तूप के साथ पोखरे के विकास के बाद यहां पर्यटक आएंगे और लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे। राजकुमार वर्मा 151109870
