EPaper LogIn
एक बार क्लिक कर पोर्टल को Subscribe करें खबर पढ़े या अपलोड करें हर खबर पर इनकम पाये।

चलते-फिरते मौत के डिब्बों पर आखिर कब जाएंगे जिम्मेदार? सवालों के घेरे में आग का गोला बन रहीं बसें
  • 151000001 - PRABHAKAR DWIVEDI 6544 43334
    26 Oct 2025 23:35 PM



राजस्थान के जैसलमेर में हुए दर्दनाक आग का गोला बनी बस के हादसे ने पूरे देश को झकझोर दिया। इस हृदयविदारक घटना में 20 यात्रियों की मौत हो गई। प्रारंभिक जांच में खुलासा हुआ कि बस में यात्रियों के साथ प्रतिबंधित पटाखे रखे गए थे, जिनसे आग विकराल रूप ले बैठी।

हादसे के बाद से सवाल उठा रहे हैं कि आखिर क्यों देशभर में निजी बसों को सवारी के साथ-साथ सामान ढोने का जरिया बनाया जा रहा है? क्यों सरकारी एजेंसियां आंख मूंदे बैठी हैं? और क्यों हर दिन हजारों लोग ऐसी 'चलती मौत की सवारियों' में सफर करने को मजबूर हैं?

दिल्ली से चलने वाली बसों में छिपा खतरा

दिल्ली से उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और यहां तक कि नेपाल तक पांच हजार से अधिक अंतरराज्यीय निजी बसें रोजाना चलती हैं। इन बसों का नेशनल परमिट पर्यटकों को ले जाने और लाने के लिए होता है(

लेकिन हकीकत यह है कि ज्यादातर बसें आम सवारियों से खचाखच भरी होती हैं। यही नहीं, इनकी डिग्गियों और छतों पर अवैध माल भरा जाता है। कई बसों में नशीले पदार्थ, पटाखे और ज्वलनशील सामग्री तक पहुंचाई जाती है।

बस मालिकों के लिए यह फायदे का सौदा है। एक ओर यात्रियों से किराया वसूलना और दूसरी ओर बिना ई-वे बिल वाले माल की ढुलाई कर कमाई करना। यह न केवल मोटर वाहन अधिनियम का उल्लंघन है बल्कि जीएसटी चोरी का बड़ा जरिया भी बन गया है।

खुलेआम हो रहा अवैध माल लोडिंग का खेल

पुरानी दिल्ली में कई स्थानों पर यह खेल खुलेआम चल रहा है। कश्मीरी गेट, मोरी गेट, कमला मार्केट, तीस हजारी, सदर बाजार, खन्ना मार्केट, राजेंद्र मार्केट और गुरु नानक आई अस्पताल के बाहर हर दिन यात्री बसों में माल लादा और उतारा जाता है।

इन बसों में पहले सीटें यात्रियों से भर दी जाती हैं, फिर नीचे डिग्गी, छत और यहां तक कि गलियारे तक में सामान भर दिया जाता है। कई बार बस के कर्मचारी भी गलियारे में बैठ जाते हैं ताकि रास्ते में जगह-जगह माल उतारा जा सके।

इससे न केवल बस की भार क्षमता से कई गुना ज्यादा वजन हो जाता है बल्कि वाहन का संतुलन भी बिगड़ जाता है। यही वजह है कि कई बसें सड़क पर 'टेढ़ी' चलती दिखाई देती हैं और जरा सी चिंगारी से हादसा तय हो जाता है।

निजी बस ऑपरेटरों ने फिटनेस मानक और सुरक्षा नियम ताक पर रखें

  • अधिकांश बसों में आपात द्वार या तो बंद हैं या उनके सामने सीटें लगा दी गई हैं।
  • सीटों के बीच पर्याप्त फासला नहीं छोड़ा गया है।
  • कई बसों के पास फिटनेस प्रमाण पत्र तक नहीं हैं।
  • जिन बसों की लाइफ पूरी हो चुकी है, उन्हें पेंट कर डबल डेकर बना दिया गया है।

विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसी स्थिति में किसी भी आपदा के दौरान यात्रियों का कुछ ही मिनटों में बस से बाहर निकलना लगभग असंभव है। यही कारण है कि जैसलमेर और हाल में पलवल जैसी घटनाओं में यात्री जिंदा जल गए।

बिना परमिट चल रहीं हजारों बसें

दिल्ली के बाहरी और पूर्वी इलाकों में रोहिणी सेक्टर-20, 23, 24, निठारी, बादली मोड़, अक्षरधाम, विनोद नगर आदि स्थानों से हर रात ऐसी बसें रवाना होती हैं जिनके पास कोई वैध परमिट नहीं है। ये बसें अक्सर कॉलोनियों के बीच खड़ी होती हैं और देर रात यात्रियों को लेकर रवाना होती हैं।

त्योहारों के मौसम में इनकी संख्या कई गुना बढ़ जाती है। परिवहन विभाग और यातायात पुलिस की मिलीभगत से ये बसें बिना किसी रोकटोक के राज्य सीमाएं पार करती हैं।

कबाड़ बसों का अड्डा बना खोरी बैरियर

‘दैनिक जागरण’ की टीम की पड़ताल में सामने आया कि गुरुग्राम, रेवाड़ी और नूंह जिलों से रोजाना 20 से अधिक कबाड़ बसें उत्तर प्रदेश और बिहार के लिए रवाना हो रही हैं। इनमें से अधिकतर बसें रिकॉर्ड में स्क्रैप घोषित हो चुकी हैं, लेकिन उन्हें मॉडिफाई कर डबल डेकर के रूप में सड़कों पर उतार दिया गया है।

इन बसों का मुख्य ठिकाना है राजस्थान बॉर्डर पर नूंह जिले का खोरी बैरियर। सुबह और शाम के समय यहां से बसें बलिया, अयोध्या, गोरखपुर, छपरा, दरभंगा और बेतिया के लिए रवाना होती हैं।

हर बस की क्षमता करीब 40 यात्रियों की होती है, लेकिन इनमें 50 से अधिक लोग बैठाए जाते हैं। बसों की डिग्गी टैक्स चोरी वाले सामान के ढुलाई केंद्र के रूप में इस्तेमाल होती है। यही नहीं, कई बसों में सुरक्षा उपकरण तक मौजूद नहीं होते।

श्रमिकों की मजबूरी का फायदा उठा रहे ऑपरेटर

रेवाड़ी, धारूहेड़ा, बावल, भिवाड़ी, नीमराणा और खुशखेड़ा जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में लाखों की संख्या में उत्तर प्रदेश और बिहार के श्रमिक काम करते हैं। लेकिन अपने गांवों तक उनकी सीधी बस सेवा नहीं है। इस कमी का फायदा उठाकर निजी बस ऑपरेटरों ने कंडम बसों को मौत की सवारी में बदल दिया है।

स्थानीय प्रशासन ने भिवाड़ी और धारूहेड़ा से ऐसी बसों पर कुछ सख्ती दिखाई थी, लेकिन उसके बाद बस मालिकों ने खोरी बैरियर को नया 'सेफ जोन' बना लिया। यहां से रोजाना 10-12 बसें रवाना होती हैं, जबकि कुछ बसें मानेसर और रेवाड़ी के ग्रामीण इलाकों से आकर यहीं जुड़ती हैं।

भ्रष्टाचार से सुरक्षित हो गया अवैध रूट

परिवहन विभाग और पुलिस की मिलीभगत से यह पूरा नेटवर्क फल-फूल रहा है। विभागीय सूत्रों के मुताबिक, एक बस की रवानगी पर 5,000 से 6,000 रुपये तक की अवैध वसूली होती है। यह वसूली नूंह से लेकर पलवल तक फैली है। यही 'सेटिंग' इन बसों के लिए सुरक्षा कवच बन चुकी है, जिसके चलते किसी भी स्तर पर कार्रवाई ठंडी पड़ जाती है।

बार-बार हादसे, पर कार्रवाई नहीं

बीते 10 दिनों में देशभर में तीन बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं। जैसलमेर और हैदराबाद में बस आग की घटनाओं में कुल 46 लोग जलकर मर गए, जबकि पलवल में शुक्रवार रात डबल डेकर बस आग का गोला बन गई। फिर भी परिवहन विभाग की तरफ से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

दिल्ली में ऑल इंडिया मोटर एंड गुड्स ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेंद्र कपूर का कहना है कि बसों में माल ढुलाई प्रतिबंधित है, लेकिन विभागों की मिलीभगत से पूरे देश में ऐसा हो रहा है। इससे यात्रियों की जान खतरे में है। हमने बार-बार दिल्ली सरकार और पुलिस से शिकायत की, लेकिन किसी एजेंसी ने कार्रवाई नहीं की।

वहीं, ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस के अध्यक्ष हरीश सब्बरवाल ने कहा कि  टूरिस्ट परमिट वाली बसों में सवारियों को ढोना और माल भरना गंभीर अपराध है। इसके लिए सख्त कानून और भ्रष्टाचार-मुक्त व्यवस्था की आवश्यकता है।

आखिर जिम्मेदार कौन?

कानून स्पष्ट रूप से कहता है कि टूरिस्ट बसें केवल टूर पैकेज या समूह यात्राओं के लिए होती हैं, न कि आम सवारियों के लिए। ऐसे में यह सवाल उठता है कि बिना परमिट, बिना फिटनेस और बिना सुरक्षा के ये बसें सड़कों पर कैसे दौड़ रही हैं?

इसका जवाब किसी एक विभाग के पास नहीं है, क्योंकि परिवहन विभाग, आरटीए, पुलिस और जीएसटी विभाग सभी इस “धंधे” के अलग-अलग हिस्से से जुड़े हैं।

जैसलमेर से खोरी बैरियर तक एक जैसी कहानी। चाहे जैसलमेर की पटाखों से भरी बस हो या रेवाड़ी से चलने वाली कबाड़ डबल डेकर। तस्वीर एक जैसी है। बसें यात्रियों और सामान का घातक मिश्रण बन चुकी हैं। सुरक्षा के नाम पर शून्य इंतजाम, भ्रष्टाचार से चल रही सेटिंग और कमजोर कानून-प्रवर्तन ने इन बसों को टाइम बम में बदल दिया है।

प्रशासन की नींद कब खुलेगी?

पिछले साल भी रेवाड़ी प्रशासन ने कुछ बसों पर कार्रवाई की थी, लेकिन अब वही बसें फिर सड़कों पर हैं। अधिकारियों का कहना है कि अगर फिर से ऐसी गतिविधियां चल रही हैं तो विशेष टीम बनाकर कार्रवाई की जाएगी। 

देशभर में यात्रियों की सुरक्षा के नाम पर सख्त कानून तो हैं, लेकिन उनके लागू होने की इच्छाशक्ति नहीं। जब तक फिटनेस, परमिट, और माल ढुलाई की कड़ाई से निगरानी नहीं होगी, तब तक जैसलमेर जैसी त्रासदियां दोहराई जाती रहेंगी।

जरूरत है कि दिल्ली से लेकर रेवाड़ी और खोरी बैरियर तक चल रही इन अवैध बसों पर तुरंत प्रतिबंध, कठोर दंड और व्यवस्थित वैकल्पिक यातायात व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। ताकि यात्रियों को सस्ती नहीं, सुरक्षित यात्रा मिल सके।

 

Hero Image

 



Subscriber

188078

No. of Visitors

FastMail