"कभी-कभी आप अपने बड़ों को देखकर सीखते हैं कि आपको जीवन में क्या नहीं करना चाहिए। मेरे पिता ने 500 से ज़्यादा फ़िल्मों में काम किया। मगर वो कभीा एक कार तक नहीं खरीद सके। और हमें किराए के घर में रहना पड़ता था। मैं अपने पिता के बारे में कोई नकारात्मक टिप्पणी नहीं करना चाहता। क्योंकि वो वैसे ही जिए जैसे वो जीना चाहते थे। मगर जब मैं इस्टैब्लिश हो गया तो मैंने सबसे पहले एक घर खरीदा। और मैं सही समय पर इस्टैब्लिश हो गया। वरना..." अपने पिता व एक ज़माने के बहुत नामी अभिनेता मुराद साहब को याद करते हुए अभिनेता रज़ा मुराद जी ने ये बात एक इंटरव्यू में कही थी। और रज़ा मुराद जी ने उस इंटरव्यू में और भी कई बातें कही थी जो कायदे से हम सभी के लिए सीख है। अच्छी बात ये है कि रज़ा मुराद की उन बातों से अधिकतर लोग सहमत ही होंगे।
उस इंटरव्यू में रज़ा मुराद जी ने कहा था कि बहुत से लोग सेविंग्स नहीं करते। 1950-60 में कई हीरोज़ जो अपने करियर की पीक में बहुत डिमांड में थे। मगर अपने बुढ़ापे में उन्हें बहुत ज़्यादा परेशानियां उठानी पड़ी। उन्हें अपने फ़्यूचर के लिए प्लानिंग करनी चाहिए थी। ये दुर्भाग्यपूर्ण है। मगर यही लाइफ़ है। आपको अपने परिवार के फ़्यूचर के बारे में भी सोचना पड़ेगा। अगर आपके बच्चे हैं तो ये आपकी ज़िम्मेदारी है कि आप उनका ख्याल रखें।
रज़ा मुराद जी ने अपने बारे में कहा था कि उन्होंने भी शुरुआती जीवन में बहुत मुश्किलात देखी थी। गरीबी देखी थी। भोपाल के उनके घर में(ननिहाल) उस वक्त बिजली भी नहीं थी। इसलिए एग़्ज़ाम्स के वक्त घर से कुछ दूर स्थित एक लैंप पोस्ट के नीचे बैठकर उन्हें पढ़ाई करनी पड़ती थी। बकौल रज़ा मुराद, आधी रात को वो उस लैंप पोस्ट के नीचे बैठकर पढ़ना शुरू करते थे और सुबह छह बजे तक पढ़ते रहते थे। और फिर 7 बजे एग्ज़ाम देने जाते थे। रज़ा मुराद कहते हैं कि आज भी जब वो भोपाल जाते हैं तो उस लैंप पोस्ट के सामने गाड़ी रोकर उसे सैल्यूट करते हैं।
रज़ा मुराद जी ने ये भी कहा था उस इंटरव्यू में कि जब आप पैसा कमाएं तो आप अपने बुढ़ापे के बारे में भी सोचें। हमारी फ़िल्म इंडस्ट्री में क्र्यू मेंबर्स के भी अपने घर होते हैं। उनकी भी सेविंग्स होती है। वो जानते हैं कि कमाई कभी भी बंद हो सकती है। सेहत खराब हो सकती है। इसलिए किसी के सामने क्यों भीख मांगना? रज़ा मुराद जी ने उसी इंटरव्यू में ही कहा था,"मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहूंगा। मगर कई ऐसे एक्टर्स थे जो अपने करियर में एक वक्त पर बहुत बिज़ी होते थे। बढ़िया पैसा कमाते थे। उन्होंने बहुत पैसा और फ़ेम कमाया। मगर उन्होंने सारा पैसा खर्च कर दिया। किसी वक्त पर वो लैविश बंगले में रहते थे। मगर बुढ़ापे में किराए पर रहने को मजबूर हो गए। मैंने उन्हें ऑटो रिक्शा में ट्रैवल करते देखा है।"
फ़िल्म इंडस्ट्री के अपने शुरुआती दिनों के बारे में रज़ा मुराद जी ने बताया था,"हमारे पास कार नहीं थी उन दिनों। मैं बस या ट्रेन से सफ़र करता था। मेरे पिता मुझसे कहते थे कि बेटा, अगर तुम्हें कोई महिला खड़ी दिखे तो तुम अपनी सीट से खड़े हो जाना। और सीट उसे दे देना। और अगर कोई महिला बैठी है और उसके बराबर में कोई सीट खाली पड़ी है तो महिला से पूछकर ही उस सीट पर बैठना।" रज़ा मुराद साहब के मुताबिक, उनके पिता हामिद अली मुराद का रामपुर के नवाब से किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया था। तो नवाब ने उन्हें 24 घंटे में रामपुर छोड़कर जाने को कहा। तब हामिद अली मुराद मुंबई आए थे। वो राइटर बनना चाहते थे। मगर महबूब खान ने उन्हें बतौर एक्टर हायर किया था। रज़ा मुराद जी के मुताबिक, उनके पिता मुराद शायद ने 300 फ़िल्मों में जज की भूमिका निभाई थी। ये शायद एक रिकॉर्ड हो सकता है। एक ज़माने में वो इतना मशहूर थे कि लोग उन्हें मुराद रामपुरी कहा करते थे।
आज मुराद साहब का जन्मदिवस है। मुराद साहब अपने ज़माने के बहुत ज़बरदस्त चरित्र अभिनेता थे। लोग अक्सर मुराद साहब व डीके सप्रू साहब के बीच फर्क नहीं कर पाते हैं। क्योंकि दोनों का चेहरा काफी मिलता है। मुराद साहब अपनी प्रभावशाली शख्सियत व रोबीली आवाज़ के लिए जाने जाते थे। 24 सितंबर 1911 को उत्तर प्रदेश के रामपुर में मुराद साहब का जन्म हुआ था। साल 1943 में आई फिल्म नजमा से मुराद साहब का फिल्मी सफर शुरू हुआ था। वो फिल्म महबूब खान ने बनाई थी। उसके बाद तो इन्होंने कई सालों तक व कई शानदार फिल्मों में काम किया। 24 अप्रैल 1997 को मुराद साहब ये दुनिया छोड़कर चले गए। किस्सा टीवी मुराद साहब को नमन करता है।
