दीपावली के खुशियों के बीच भोपाल में एक सस्ता, लेकिन घातक नया 'खिलौना' कई परिवारों की रातों को काली कर गया. सिर्फ 150–200 रुपए की लागत वाली कैल्शियम कार्बाइड गन ने इस बार बच्चों और युवाओं की आंखों की रोशनी तक खतरे में डाल दी. अस्पतालों के आंकड़ों के मुताबिक, अब तक 125 से ज्यादा लोग इस विस्फोटक जुगाड़ की चपेट में आ चुके हैं. इसमें अधिकांश मरीज 8 से 14 वर्ष के बीच के बच्चे हैं, लेकिन 7 साल से लेकर 35 साल तक के वयस्क भी प्रभावित हुए हैं.यह देसी गन गैस लाइटर, प्लास्टिक पाइप और आसानी से उपलब्ध कैल्शियम कार्बाइड से सरल तरीक़े से बनाई जाती है. पाइप में भरा कैल्शियम कार्बाइड जब पानी से मिलता है तो एसिटिलीन गैस उत्पन्न होती है. एक छोटी सी चिंगारी मिलते ही तेज विस्फोट होता है और पाइप टूटने पर निकलने वाले प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़े, जैसे छर्रे, सीधे शरीर खासकर आंखों में घुसकर गंभीर चोटें करते हैं. अक्सर बच्चे जिज्ञासा में झांकते हैं और उसी क्षण धमाका हो जाता है, जिससे चेहरे, आंखों और कॉर्निया को गंभीर क्षति पहुँचती है।भोपाल के अस्पतालों में आने वाले रोगियों की रिपोर्ट में बताया गया है कि सैकड़ों में से 20–30 प्रतिशत मामलों में गंभीर डैमेज देखा गया है. कई लोगों को तत्काल ऑपरेशन की आवश्यकता पड़ी और कुछ मामलों में कॉर्निया ट्रांसप्लांट तक करना पड़ा. जिन्हें मामूली जली हुई चोटें थीं, उन्हें पट्टी कर घर भेज दिया गया है, लेकिन गंभीर मामलों के लिए अब ऑपरेशन और फॉलो-अप की तैयारी जारी है.नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. अदिति दुबे ने बताया, ''हमारे पास 7 साल से लेकर 35 साल तक के लोग आए हैं. इस दिवाली हमने कार्बाइड बम से एक विशेष प्रकार की इंजरी देखी. कई मामलों में केमिकल के उपयोग की वजह से आंखों में केमिकल बर्न हुआ है. 20 से 30 प्रतिशत लोगों को काफी गंभीर डैमेज हुआ है, जिनके लिए ऑपरेशन किया गया. जिनका बर्न कम था, उन्हें उपचार के बाद घर भेजा गया है. भविष्य में ऑपरेशन के परिणामों से ही पता चलेगा कि किसे कितना लाभ होगा?''
डॉक्टर का यह स्पष्ट बयान बताता है कि केवल बाहरी चोट ही नहीं, बल्कि केमिकल बर्न के कारण आंख की अंदरूनी संरचनाएं भी प्रभावित हुई हैं, जो आंखों की रोशनी हमेशा के लिए खत्म करने की वजह बन सकती हैं. परिवारों में गहरी चिंता का माहौल है. माता-पिता का कहना है कि सस्ती कीमत और आसानी से उपलब्ध सामग्री ने इस घातक जुगाड़ को बढ़ावा दिया है. विशेषज्ञों का सुझाव है कि बाजारों में कैल्शियम कार्बाइड और ऐसे घटकों की उपलब्धता पर नियंत्रण, साथ ही लोगों में जागरूकता अभियान जरूरी हैं. स्कूलों में बच्चों को जोखिमों के बारे में शिक्षित करना और घरों में दीवारों पर चेतावनी चस्पा करना भी मददगार होगा. नागरिकों की जिम्मेदारी के साथ प्रशासन की भी बड़ी भूमिका बनती है जैसे बिक्री पर रोक, होलसेल सप्लायर्स के खिलाफ कार्रवाई और त्योहारों के समय कड़े निरीक्षण अनिवार्य हैं.
