भगवान को विशेष चमत्कारी औषधियों जैसे रस, स्वर्ण, हीरा, माणिक, पन्ना, मोती तथा जड़ी-बूटियों में केशर, कस्तूरी, अम्बर, अश्वगंधा, अमृता, शंखपुष्पी, मूसली आदि का विशेष भोग अर्पित किया गया। उनके आस-पास विशेष सुगंधित फूलों से श्रृंगार किया गया, जो हिमालय से मंगवाए गए थे, इनमें आर्किड, लिली, गुलाब, ग्लेडियोलस, रजनीगंधा, तुलसी और गेंदा शामिल थे।
तत्पश्चात, शास्त्रोक्त विधि से पूजन एवं भव्य आरती का आयोजन राजवैद्य स्व. पं. शिव कुमार शास्त्री के पुत्रों पं. रामकुमार शास्त्री, नंदकुमार शास्त्री, समीर कुमार शास्त्री, उत्पल शास्त्री, आदित्य, मिहिर एवं कोमल शास्त्री ने सपरिवार किया। मंदिर प्रांगण में शहनाई की मंगलधुन गूंज रही थी, जिससे पूरा वातावरण सुगंधित पुष्पों और औषधियों की भीनी-भीनी खुशबू से भर गया था।
वर्ष पर्यन्त आरोग्य रहने की कामना लेकर भगवान धन्वंतरि के दर्शन हेतु श्रद्धालुओं की भारी भीड़ शाम 5 बजे से ही धन्वंतरि निवास में जुटने लगी। रात 10 बजे तक देश के विभिन्न कोनों और विदेशों से आए श्रद्धालु कतारबद्ध होकर भगवान धन्वंतरि की अष्ट धातु की मूर्ति का दर्शन कर भाव विभोर हो गए। सभी श्रद्धालु अपने को निरोग महसूस करने लगे, मानो साक्षात हरि उनके सामने खड़े हों।
इस अवसर पर वाराणसी के विधायक गणों, पुलिस अधिकारियों सहित गणमान्य नागरिकों ने भगवान धन्वंतरि का आशीर्वाद लिया। आगंतुकों का स्वागत उत्पल शास्त्री ने किया। समस्त श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरण का कार्य आदित्य विक्रम शास्त्री और मिहिर विक्रम शास्त्री ने किया।
इस भव्य आयोजन ने श्रद्धालुओं के मन में आरोग्य और समृद्धि की कामना को और भी प्रगाढ़ किया। धनतेरस का यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक था, बल्कि स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना का भी एक महत्वपूर्ण अवसर बना।
