: मोर्चरी के बाहर हवा भारी है…वो हवा जिसमे चीखें घुल गई हैं, सिसकियां जम गई है। महात्मा गांधी अस्पताल की बर्न यूनिट से निकलते परिजनों की आंखों में उम्मीद नहीं, सिर्फ प्रतीक्षा है, 'हमें बस अपने अपनों के शव दे दो… दिन निकाल लिया, रात कैसे काटेंगे?'
ये शब्द है सेतरावा के लवारन गांव के बुजुर्ग पुंजाराम के जिनके दामाद महेंद्र मेघवाल, उनकी पत्नी पार्वती और तीन मासूम बच्चे… खुशबू, दीक्षा और शौर्य… अब इस दुनिया में नहीं है
जैसलमेर बस हादसे में सेतरावा के लवारन गांव के महेंद्र मेघवाल और उनका पूरा परिवार जिंदा जल गया। यह पुरानी तस्वीर मेघवाल के तीनों बच्चों की है, जो बर्थ डे सेलेब्रेट कर रहे थे। तीनों मासूमों को हादसा निगल गया। अब तस्वीर में यादें ही बची हैं।
'हम 4 लाख देते हैं, हमारा बेटा वापस ला दो…'
महेंद्र जैसलमेर के गोला-बारूद डिपो में काम करते थे। दीपावली का तोहफा लेकर जोधपुर छुट्टियों पर आ रहे थे मगर मौत की आग ने पूरा परिवार निगल लिया। हॉस्पिटल में बैठी बुजुर्ग मां कहती हैं, 'सरकार दो लाख का मुआवजा देकर मजाक कर रही है। हम चार लाख देते हैं, हमारा बेटा वापस ला दो।'
नए घर के रह गए अधूरे सपने
महेन्द्र मेघवाल ने वर्षों की मेहनत और बचत से गांव लवारन में एक नया आशियाना बनाया था। सपना था कि छुट्टियों में जैसलमेर से लौटकर अपने वृद्ध माता-पिता और बड़े भाई के परिवार संग सुकून से समय बिताएंगे। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।
दीपावली से ठीक पहले हुआ यह दर्दनाक हादसा उनके सारे अरमान राख कर गया। जिस घर में रौनक होनी थी अब वहां सन्नाटा पसरा है। महिलाएं विलाप कर रही हैं और गांव शोक में डूबा है। कुछ ही दिन पहले तैयार हुआ वह घर अब अधूरे सपनों और बुझी हुई उम्मीदों का प्रतीक बन चुका है।
हादसे की सूचना मिलते ही गांव में मातम फैल गया। डीएनए जांच के बाद शव परिजनों को सौंपे जाएंगे जिसके बाद गुरुवार को अंतिम संस्कार किया जाएगा
