बहस छिड़ी है कि बड़ा कौन, नरेंद्र सिंह तोमर या ज्योतिरादित्य सिंधिया। राजनीतिक पटल पर बर्चस्व को लेकर अघोषित युद्ध छिड़ा हुआ है, सोशल मीडिया रणभूमि बन चुका है, जहां दोनों के समर्थक एक-दूसरे पर शब्द वाण छोड़ रहे हैं...
मतलब, गुटबाजी परवान चढ़ रही है। ऐसे आसार भी थे, क्योंकि जहां सिंधिया हों, वहां उनका अलग खेमा न हो, यह सम्भव ही नहीं।
बहरहाल जो चल रहा है, उसके संभावित नतीजे को लेकर हो सकता है कि सिंधिया और तोमर दोनों चिंता में हों, तनाव में हों, लेकिन मेरे हिसाब से भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व फील गुड ही कर रहा होगा। क्योंकि वर्तमान में भाजपाई सिंहासन के सिरमौर तो चाहते ही यही हैं कि कहीं, कोई भी नेता ऊपर उठकर उनके कंधे पर हाथ न रख पाए। ऐसे में यदि ये दोनों नेता आपस मे लड़ रहे हैं तो जाने-अनजाने ऊपर वालों की मंशा पूरी कर ही रहे हैं ना।
बात अगर नरेंद्र सिंह तोमर की करें तो राजनीतिक कुंडली में उनके ग्रह-नक्षत्र अनुकूल नहीं दिखते। क्योंकि उनके बढ़ते राजनीतिक कद के चारों ओर बहुत समय से शीर्ष नेतृत्व रूपी राहु-केतु बैठे हैं। इन्हीं के प्रभाव से वे राष्ट्रीय राजनीति से खिसककर प्रदेश स्तर तक सीमित रह गए हैं।
ऐसे में सिंधिया गुट की ओर से मिल रही चुनौती निश्चित तौर पर उनके लिए चिंता का विषय हो सकती है।
दूसरी ओर नरेंद्र सिंह तोमर के गढ़ में बढ़ती पूछ-परख से सिंधिया का हौसला निश्चित तौर पर बढ़ ही रहा होगा। भाजपा के कुछ पुराने नेता भी याचक भाव से सिंधिया को निहार रहे हैं तो यह भी उनका आत्मविश्वास बढ़ाने वाला फैक्टर है। लेकिन चम्बल अंचल में बॉसगिरी पर फोकस करते हुए वे शायद भूल रहे होंगे कि इससे राष्ट्रीय स्तर पर उनकी परफॉर्मेंस प्रभावित हो सकती है।
खास बात यह कि ऊपर वाले नरेंद्र सिंह तोमर की तरह सिंधिया को भी एक सीमित क्षेत्र में लड़ते और निपटते देखना चाहते होंगे। जब उनकी मंशा ऑटोमेटिकली पूरी हो रही है तो उनके लिए ये सोने पर सुहागा जैसा हुआ ना।
वैसे व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है कि अगर आदर्शों को परे रखकर सिर्फ राजनीति की बात करें तो अंचल में उनके विरोध के विभिन्न कारण हो सकते हैं, लेकिन अभी तक नरेंद्र सिंह तोमर का कौशल और उपलब्धियां सिंधिया से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हैं क्योंकि सिंधिया को सियासी कद, ठसक, रसूख यहां तक कि समर्थक भी विरासत में मिले, जबकि तोमर के पास जो भी है, उन्होंने खुद कमाया।
#नोट- मैंने किसी भी चुनाव में तोमर को कभी वोट नहीं दिया और अब सिंधिया या उनके समर्थकों को भी नहीं दूंगा
