नंदी महाराज रोते हुए कहते हैं – “लाखों का चंदा गया, पर गाय माता के नाम पर हुआ सिर्फ धोखा।”
आज के समय में गाय को माँ कहकर सम्मानित किया जाता है, लेकिन क्या सिर्फ माँ कह देने से कोई माँ बन जाती है? माँ बनने के लिए उसकी सेवा करनी पड़ती है, उसका ख्याल रखना पड़ता है, उसे भोजन-पानी उपलब्ध कराना पड़ता है।
दुर्भाग्य से आज समाज का बड़ा हिस्सा गाय का दूध निकालने के बाद उन्हें सड़कों पर आवारा की तरह छोड़ देता है। यही वजह है कि सड़क दुर्घटनाओं में असंख्य गौवंश अपनी जान गंवा देता है। कुछ लोग तो इन घटनाओं को बहाना बनाकर ट्रक और गाड़ी चालकों से मारपीट करते हैं और अवैध वसूली करते हैं। क्या यह गाय सेवा है? नहीं, यह गाय माता के नाम पर पाप है।
सरकार ने गायों की देखभाल के लिए गौशालाओं का निर्माण कराया, लेकिन उनमें भी वास्तविक सेवा कम और भ्रष्टाचार अधिक दिखाई देता है। इसी का उदाहरण है – ग्राम पंचायत बडेरा भारश के ग्राम जुझारपुर में स्थित श्री कृष्ण गौशाला, जनपद पंचायत भितरवार। वहाँ की हालत देखकर आँखों में आँसू आ जाते हैं। गायें भूखी-प्यासी, बीमार और असहाय हैं, जबकि उनके नाम पर चंदे और सरकारी अनुदान की मोटी रकम आती है।
तो सवाल उठता है –
क्या हम गाय माता की सेवा कर रहे हैं या सिर्फ दिखावा?
क्या उनके नाम पर चंदा इकट्ठा कर पेट भरना ही धर्म है?
गाय हमारी माँ है। हर हिंदू भाई का फर्ज है कि गाय माता की सही मायनों में सेवा करे। जो लोग गायों पर अत्याचार करते हैं, उन्हें रोकना भी उतना ही जरूरी है।
गौ सेवा सिर्फ शब्दों से नहीं, कर्मों से होनी चाहिए।
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