
हिंदू धर्म में भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देवता माना जाता है और किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए सबसे पहले भगवान गणेश जी की पूजा और आवाहन किया जाता है। भगवान गणेश को सुख-समृद्धि, बुद्धि और सफलता देने वाले और जीवन से बाधाओं को दूर करने वाला देवता माना जाता है। भगवान गणेश स्वयं रिद्धि-सिद्धि के दाता और शुभ-लाभ के प्रदाता हैं। आपने अक्सर घरों के बाहर मुख्य द्वार पर स्वास्तिक के साथ शुभ-लाभ लिखा होता है। आइए जानते हैं शुभ-लाभ का भगवान गणेश से क्या संबंध होता है।
शुभ और लाभ भगवान गणेश के पुत्र
- शास्त्रों के अनुसार भगवान भोलेनाथ के पुत्र गणेशजी का विवाह प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्री ऋद्धि और सिद्धि नामक दो विदुषी कन्याओं से हुआ था। सिद्धि से 'क्षेम'(शुभ) और ऋद्धि से 'लाभ' नाम के दो पुत्र हुए। गणेश पुराण के अनुसार शुभ और लाभ को केशं और लाभ नामों से भी जाना जाता है वहीं रिद्धि शब्द का भावार्थ है 'बुद्धि' जिसे हिंदी में शुभ कहते हैं। सिद्धी शब्द का मतलब होता है 'आध्यात्मिक शक्ति' की पूर्णता यानी 'लाभ'।
- ज्योतिष की दृष्टि में भी चौघड़िया या मुहूर्त देखते समय उसमें अमृत के अलावा लाभ और शुभ को ही महत्वपूर्ण माना जाता है। गणेश पुराण में कहा गया है कि स्वास्तिक गणेशजी का ही स्वरूप है, इसलिए सभी शुभ,मांगलिक और कल्याणकारी कार्यों में इसकी स्थापना अनिवार्य है।इसमें सारे विघ्नों को हरने और अंमगल दूर करने की शक्ति निहित है।
- घर के मुख्य दरवाजे पर 'स्वास्तिक' मुख्य द्वार के ऊपर मध्य में और शुभ और लाभ बाईं और दाईं तरफ लिखते हैं। स्वास्तिक की दोनों अलग-अलग रेखाएं गणपति जी की पत्नी रिद्धि-सिद्धि को दर्शाती हैं।
- घर के बाहर शुभ-लाभ लिखने का मतलब यही है कि घर में सुख और समृद्धि सदैव बनी रहे। लाभ लिखने का भाव यह है कि भगवान से लोग प्रार्थना करते हैं कि उनके घर की आय और धन हमेशा बढ़ता रहे, लाभ प्राप्त होता रहे।
वास्तु दोष होता है दूर
- स्वास्तिक के दाएं-बाएं शुभ-लाभ लिखने से वहां के वास्तु दोष दूर होते हैं। यदि आपके घर में या व्यवसायिक स्थल पर किसी प्रकार का कोई वास्तुदोष है तो यहां की नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करने के लिए पूर्व,उत्तर-पूर्व या उत्तर दिशा में शुभ-लाभ सहित स्वास्तिक का चिन्ह बनाना चाहिए।