काशी के प्रख्यात सनातन धर्मोपदेशक देवेन्द्र जी महाराज इंग्लैंड के कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में आयोजित कार्यक्रम में वर्चुअल माध्यम से उपस्थित हो कर समस्त नवयुवकों को संबोधित करते हुए कहा शास्त्रोक्त वचनानुसार विश्वासघाती स्त्री नरकगामी होती हैं - देवेन्द्र जी महाराज काशी।नमो नमः मैं काशी से देवेन्द्र चतुर्वेदी आज कल की स्त्रीयों (लड़कीयों)का एवं अल्पसंख्या में लड़कों का भी एक नया प्रचलन सा आ चुका है धर्म एवं मर्यादा को ताख पर रख कर शादी से पूर्व ही प्रेम प्रसंग में रहना और एक नहीं कई लोगों के साथ रहना फिर विवाह किसी और से करना और फिर उसे जान से मार देना फिर किसी पर पुरुष के साथ जीवन यापीत करना जो कि सरासर घृणित कर्म है बहुत ही अधिक संख्या में बेचारे पुरुष असुरक्षित हैं इस घृणित कर्म कि उत्पत्ति का मूल कारण जो अपने बच्चों को धर्म शास्त्रों से वैदिक परम्परा से हटाकर अछुतों जैसा व्यवहार करते हुए आधुनिक परम्परा में संलग्न करना और कराना ही है प्रेम कदापि गलत नहीं है
प्रेम को संसार में ईश्वर का रुप कहा गया है। लेकिन प्रेम अगर मर्यादा और नीतियों को ताक पर रखकर काम भावना में बदल जाए तो इससे बड़ा पाप कुछ भी नहीं है। इस पाप की ऐसी सजा है जिसे जानेंगे तो आपका दिल दहल जाएगा।गरुड़ पुराण में कहा गया है कि जो व्यक्ति मर्यादा की रेखा पार करके परस्त्री अथवा परपुरुष से संबंध बनाता है उसके लिए यमराज ने बड़ा ही कठोर दंड निर्धारित किया है।ऐसे स्त्री और पुरुष की जीवात्मा को दहकते लोहे के खंभे का आलिंगन करवाया जाता है। इससे जीवात्मा का शरीर जल जाता है। जीवात्मा उस क्षण को याद करके रोता है जब उसने अवैध संबंध बनाया था।
इससे भी यमराज के दूतों के हृदय नहीं पिघलता हैं और बार बार दहकते लौह स्तंभ का आलिंगन करवाते हैं।
मनुस्मृति में बताया गया है कि मनुष्य को संयम से काम लेना चाहिए और परस्त्री संबंध से बचना चाहिए। मनु स्मृति में यह भी बताया गया है कि जो व्यक्ति काम भावना के वशीभूत होकर गुरु पत्नी से संबंध जोड़ता है उसके परलोक में उसके सिर पर योनि का चिन्ह बना दिया जाएगा। यह चिन्ह अगले जन्म में व्यक्ति के सिर पर नजर आएगा।आग में लाल हुई स्त्री की मूर्ति का आलिंगन करना होगा जब तक व्यक्ति को अग्नि शुद्घ नहीं कर देती। ऐसे व्यक्ति के लिए तीसरी सजा यह है कि उसे अपने लिंग और अंडकोष को अपने हाथों से काटकर दक्षिण पश्चिम दिशा में चलना होगा जब तक उसकी मृत्यु नहीं हो जाती है। व्यभिचारी जीवनसाथी का गति ना ही यहां पर होता है और ना ही पर लोक में।
