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आनंद बक्शी मृत्युशैय्या पर थे
  • 151168597 - RAJESH SHIVHARE 0 0
    22 Jul 2025 10:10 AM



आनंद बक्शी मृत्युशैय्या पर थे। उनकी तबियत बहुत ज़्यादा खराब थी। जीवन के आखिरी दिनों में थे। एक दिन दिलीप कुमार उनसे मिलने आए। जैसे ही दिलीप साहब उनके कमरे में घुसे तो उन्हें देखते ही वो बोले,"लाले, कैसा है तू?" आनंद बक्शी जी बिस्तर पर पड़े थे। काफी कमज़ोर हो चुके थे। दिलीप साहब को देखकर वो उठने की कोशिश करने लगे। 

 

दिलीप साहब ने जब गौर किया कि आनंद बक्शी उठकर बैठने के लिए संघर्ष कर रहे हैं तो वो बोले,"ओ तू मेरे कोल नी आ सकदा। मैं तेरे कोल आ रहा हूं।" दिलीप साहब ने अपने जूते उतारे और वो आनंद बक्शी साहब के बिस्तर पर चढ़े। फिर उन्होंने कुछ ऐसा किया जो देखकर कमरे में मौजूद आनंद बक्शी जी के पुत्र राकेश बक्शी की आंखें नम हो गई। दिलीप साहब आनंद बक्शी के बराबर में लेट गए और उन्होंने बक्शी जी को गले से लगा लिया। 

 

वो मुलाकात खत्म करके जब दिलीप कुमार वहां से चले गए तो राकेश बक्शी ने अपने पिता आनंद बक्शी से कहा कि दिलीप साहब तो बड़े महान आदमी हैं। आनंद बक्शी ने बेटे से कहा,"वो हमेशा से ही ऐसे हैं।" फिर आनंद बक्शी ने बेटे को एक बहुत पुराना किस्सा सुनाया। वो घटना 1965 के किसी दिन घटी थी। 

 

शशि कपूर और नंदा की फिल्म 'जब जब फूल खिले' ब्लॉकबस्टर हो चुकी थी। उस साल की दूसरी सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म थी 'जब जब फूल खिलेे।' फिल्म का संगीत ज़बरदस्त हिट हुआ था जिसे कल्याणजी-आनंदजी ने कंपोज़ किया था। और सभी गीत आनंद बक्शी जी ने लिखे थे।

 

फिल्म के सभी प्रमुख कलाकारों को सम्मानित करने के लिए मुंबई के शन्मुखानंद हॉल में एक समारोह का आयोजन किया गया था। स्टेज पर सभी लोग बैठे थे। दिलीप कुमार उस समारोह के चीफ गेस्ट थे। आनंद बक्शी जी को यूं तो तब तक 8-9 साल हो चुके थे काम करते-करते। लेकिन 'जब जब फूल खिले' उनकी पहली हिट फिल्म थी। 

 

स्टेज पर आनंद जी की कुर्सी सबसे कोने में थी। दिलीप साहब सहित स्टेज पर मौजूद सभी लोगों को फूलों का गुलदस्ता देकर सम्मानित किया गया। लेकिन आनंद बक्शी जी को कोई गुलदस्ता नहीं मिला। कुछ देर बाद दिलीप कुमार ने नोटिस किया कि सभी के हाथ में गुलदस्ता है लेकिन आनंद बक्शी के पास नहीं है। 

 

दिलीप साहब को भी एक गुलदस्ता दिया गया था। वो गुलदस्ता हाथ में लिए दिलीप साहब आनंद बक्शी जी के पास आए और उनसे पूछा,"तुम आनंद बक्शी हो ना? इस फिल्म के गीत तुम्हीं ने लिखे हैं ना?" बक्शी जी बोले,''हां जी। मैं आनंद बक्शी हूं।'' तब दिलीप साहब ने उनसे पूछा,''तुम्हारे हाथ में बुके क्यों नहीं है?'' ''शायद खत्म हो गया होगा'', बक्शी जी ने जवाब दिया। 

 

दिलीप साहब ने अपना बुके आनंद बक्शी जी को थमाते हुए कहा,''तुम इस इंडस्ट्री में नए हो। लोग कहते हैं कि मैं तो स्टार हूं। इसलिए अगर मेरे हाथ में बुके नहीं है तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन तुम्हारे हाथ में बुके होना बहुत ज़रूरी है। मेरा ये बुके तुम रख लो।'' वो बुके थमाकर दिलीप साहब वापस अपनी सीट पर जाकर बैठ गए। आनंद बक्शी हैरान थे। वो कुछ देर तक यूं ही दिलीप साहब को देखते रहे। उनकी नज़रों में दिलीप साहब के लिए इज़्जत कई गुना बढ़ गई।

 

आज आनंद बक्शी जी का जन्मदिवस है। 21 जुलाई 1930 को रावलपिंडी में बक्शी जी का जन्म हुआ था। किस्सा टीवी भारत के महान गीतकार आनंद बक्शी जी को नमन करता है। शत शत नमन। और साथ ही हिंदी सिनेमा के ट्रैजेडी किंग दिलीप कुमार जी को भी नमन। 

 

नोट- ये एक रीपोस्ट स्टोरी है। पिछले साल आज ही के दिन पोस्ट की थी हमने। तब से अब तक हज़ारों नए लोग फ़ास्ट न्यूज़ इंडिया साथ जुड़ चुके हैं। ये स्टोरी उनके लिए शायद नई हो। पसंद आए तो कृप्या इस स्टोरी को लाइक व शेयर अवश्य करें। 



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