भारत के शुभांशु शुक्ला सहित चार अंतरिक्षयात्रियों के दल ने 15 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से जुड़ा अपना लगभग दो-सप्ताह का मिशन पूरा किया। शुक्ला की इस यात्रा को, फिलहाल साल 2027 में अपेक्षित इसरो के ‘गगनयान’ मिशन के लिए भारत के अंतरिक्षयात्रियों के पहले बैच के हिस्से के रूप में उनकी उड़ान से पहले, एक गहन अभ्यास माना गया। ऐसा मानने की वजह यह है कि भारतीय प्राधिकारियों ने शुक्ला की यात्रा – जिसका इंतजाम इसरो ने ऐक्सियम स्पेस को 500 करोड़ रुपये से ऊपर भुगतान करके किया – के लक्ष्यों की आधिकारिक रूप से जानकारी नहीं दी है। शुक्र है कि ऐक्सियम और नासा के स्पष्टीकरणों ने यात्रा के उद्देश्यों पर ज्यादा रोशनी डाली है। हालांकि इसरो और अंतरिक्ष विभाग से अब भी उम्मीद की जाती है कि वे गगनयान के तहत अपनी गतिविधियों के बारे में जो जानते हैं उसकी जानकारी सक्रियतापूर्वक मुहैया कराएं, न सिर्फ इसलिए कि इस मिशन की लागत 20,000 करोड़ रुपये है, बल्कि इसलिए भी कि शुक्ला की यात्रा से इसरो की तैयारियों को मजबूती मिलनी चाहिए। मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान एक बेहद जटिल कोशिश है: एक बार अंतरिक्ष में पहुंचने के बाद, यात्री-दल अपने सहारे होता है और विभिन्न तरह की स्थितियों में प्रतिक्रिया के लिए संसाधन सीमित होते हैं। पिछले महीने 25 जून को मिशन लांच होने के बाद इसरो द्वारा प्रकाशित बयान के मुताबिक, शुक्ला और प्रशांत नायर (वह भी गगनयान के पहले अंतरिक्षयात्री दल का हिस्सा हैं और ऐक्सियम मिशन के बैकअप दल का हिस्सा थे) को “उन्नत अंतरिक्षयान प्रणालियों, आपातकालीन प्रोटोकॉल, वैज्ञानिक पेलोड ऑपरेशन, सूक्ष्म-गुरुत्वाकर्षण अनुकूलन, अंतरिक्ष चिकित्सा, और जिंदा बचने के लिए जरूरी गुणों” से परिचित कराया गया। ऐक्सियम के मुताबिक, बतौर मिशन पायलट शुक्ला को स्टेशन से जुड़ने और अलग होने, मैनुअल संचालन, वायुमंडल में दोबारा प्रवेश, और गड़बड़ी को संभालने के बारे में प्रशिक्षित किया गया। अंतरिक्ष स्टेशन पर रहते हुए, शुक्ला को जापानी और यूरोपीय माड्यूलों में संचालन से रूबरू होने का मौका मिला, जिसके लिए उन्हें और नायर को जापान और जर्मनी में ट्रेनिंग दी गयी थी। इसरो के अध्यक्ष वी. नारायणन ने भी कहा है कि इसरो ने अगर शुक्ला को खुद से प्रशिक्षित किया होता तो जो उसे निवेश करना पड़ता, उसके मुकाबले ऐक्सियम मिशन की लागत कम है। कुल मिलाकर, नासा-इसरो-ऐक्सियम साझेदारी एक सराहनीय परिणाम के रूप में सामने आयी है, जबकि अंतरिक्ष एजेंसियों ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के रणनीतिक मूल्य की वजह से उनकी कड़ी रखवाली जारी रखी है इन चिंताओं पर भी विराम लग सकता है कि अमेरिका के ‘इंटरनेशनल ट्रैफिक इन आर्म्स रेगुलेशंस’ द्वारा लागू सीमाबद्धताएं दोनों को बहुत कुछ नहीं सीखने देंगी। इसके बजाय, इनकी जगह वो चिंताएं ले सकती हैं जो इसरो के टुकड़ों-टुकड़ों में जानकारी देने से उत्पन्न हुई हैं। अंतरिक्षयात्री प्रेरणादायी व्यक्ति होते हैं और हर उम्र के लोगों को आकर्षित करते हैं। जब भारत अपने पहले मानवयुक्त अंतरिक्ष-उड़ान अभियान की तैयारी कर रहा है, तो उत्साह बनाने के लिए इससे बढ़िया कोई तरीका नहीं हो सकता कि भारत के अंतरिक्षयात्रियों तक पहुंच सुगम बनायी जाए। इस बारे में पहल के अभाव को उचित ठहरा पाना मुश्किल है, हालांकि अब भी बहुत देर नहीं हुई है। इसरो के साथ-साथ भारत का सॉफ्ट पावर प्लेटफार्म अंतरिक्षयात्रियों तक पहुंच बढ़ाकर और जनता की पहुंच आसान बनाकर भरपूर लाभ हासिल करेगा।