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आज लग जाएगी एकादशी, हरिशयनी व्रत कल; चातुर्मास्य आरंभ
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    06 Jul 2025 22:46 PM



वाराणसी। सनातन धर्म में आषाढ़ शुक्ल एकादशी (हरिशयनी एकादशी) से कार्तिक शुक्ल एकादशी (हरिप्रबोधिनी) एकादशी तक चार माह चलने वाला चातुर्मास्य व्रत भगवान विष्णु को समर्पित माना जाता है।

इस काल में भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन (योगनिद्रा) में चले जाते हैं। इस बार चातुर्मास्य व्रत हरिशयनी एकादशी छह जुलाई से हरिप्रबोधिनी एकादशी एक नवंबर तक होगा। भगवान विष्णु के योगनिद्रा में जाने से सभी मांगलिक कार्याों पर विराम लग जाता है। इसका महात्म्य ब्रह्मवैवर्त पुराण में भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया है।

व्रत संकल्प एवं पालन :

ख्यात ज्योतिर्विद पं. ऋषि द्विवेदी बताते हैं कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी (हरिशयनी एकादशी) तिथि को प्रात:काल नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्नानादि कर ‘भगवान श्रीहरि के निमित्त प्रसन्नार्थ चातुर्मास्य में व्रत रहूंगा या रहूंगी’।

यह मानसिक विचार कर नाम गोत्र के साथ ही हाथ में जल-अक्षत, पुष्प, द्रव्य आदि लेकर संकल्प करना चाहिए। फिर दिन भर व्रत रहकर रात्रि में ‘सूप्तेत्वाम् जगन्नाथ:’ मंत्र से प्रार्थना करके भगवान विष्णु की मूर्ति को सुख-साधनों से सजी हुई शैया पर शयन कराएं। फिर अगले दिन से चातुर्मासी व्रतियों को नित्य प्रति भगवान को प्रसन्न करने के लिए श्रीविष्णुसहस्रनाम, श्रीविष्णु चालीसा, श्रीविष्णु मंत्र, पुरुषसूक्त इत्यादि का जप पाठ नित्य करना चाहिए।

भगवान श्रीकृष्ण ने इस व्रत की महत्ता धर्मराज युधिष्ठिर को बताते हुए कहा है कि जो इन चार मास में मेरे निमित्त व्रत पूजन वंदन के साथ जप-दान करता है उसे कायिक, वाचिक, मानसिक सभी तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है और किसी भी प्रकार की व्याधि उसे नहीं सताती। इस समय में गोदान, अन्नदान, भूमि दान इत्यादि जो करता है, वह आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य, प्रभुुत्व तथा शांति को प्राप्त करता है। अंत में श्रीहरि बैकुंठ में अपने चरणों में स्थान देते हैं।

 

आषाढ़ शुक्ल एकादशी तिथि (हरिशयनी व्रत) पांच जुलाई शनिवार को सायं 6:28 से लग रही है जो छह जुलाई को रात्रि 8:29 बजे तक रहेगी। हरिशयनी एकादशी व्रत की पारणा सात जुलाई को की जाएगी। चातुर्मास्य व्रतियों को इन चार मास में पत्तेदार सब्जियां, साग, भादों मास में दही, आश्विन मास में दूध तथा बैंगन इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए। चातुर्मास में व्रतियों को जमीन पर शयन तथा दिन में एक बार भोजन करना चाहिए।

 

देवोत्थान एकादशी काे प्रभु जागरण के 21 दिन बाद मिल सकेंगे विवाह के लड्डू

जगत्पालक जब योगनिद्रा से चार माह बाद एक नवंबर हरिप्रबोधिनी एकादशी को जागते हैं, तब फिर से मांगलिक कार्य आरंभ होते हैं लेकिन इस बार विवाह के लड्डू मिलने में 21 दिन लग जाएंगे।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विनय कुमार पांडेय बताते हैं कि एक नवंबर को कार्तिक शुक्ल एकादशी को भगवान तो जाग जाएंगे लेकिन शुद्ध काल 22 नवंबर से मिलेगा तो लग्न आरंभ होंगे लेकिन विवाह के लग्न 22 नवंबर से पांच दिसंबर के बीच कुल आठ दिन ही मिलेंगे। क्योंकि इस बार खरमास पांच दिसंबर को ही लग जाएगा।

  • विवाह के लग्न नवंबर में - 22, 23, 24, 25, 29, 30
  • दिसंबर में - चार व पांच दिसंबर (इन तिथियों में भी कुछ दिन के तो कुछ रात के लग्न हैं।)

मुंडन, यज्ञोपवीत, मंदिरों की प्राण-प्रतिष्ठा अब अगले वर्ष :

प्रो. पांडेय ने बताया कि नवंबर माह में देवोत्थान एकादशी के पश्चात गृह आरंभ, वधू प्रवेश, द्विरागमन आदि तो आरंभ हो जाएंगे लेकिन मुंडन, यज्ञोपवीत, मंदिरों की प्राण-प्रतिष्ठा अब अगले वर्ष यानी वर्ष 2026 में ही हो सकेगा क्योंकि ये मांगलिक संस्कार सूर्य के उत्तरायण होने पर ही कराए जाते हैं। जब देवोत्थान एकादशी आएगी तब सूर्य दक्षिणायण में होंगे। सूर्य उत्तरायण में अब अगले वर्ष मकर संक्रांति से होंगे।

 

 



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