प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने समझौते के आधार पर सामूहिक दुष्कर्म और लूट के आरोप में ट्रायल कोर्ट में लंबित आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया। साथ ही पीड़िता और आरोपियों पर दो-दो हजार रुपये हर्जाना भी लगाया। यह फैसला न्यायमूर्ति डा. गौतम चौधरी की अदालत ने बदायूं निवासी मुनीश और दो अन्य की ओर से दाखिल याचिका पर सुनाया है। साथ ही कहा कि कानून इंसाफ का जरिया है, साजिशों का हथियार नहीं। विपक्षी को सबक सिखाने के लिए मुकदमा दर्ज करवाकर बाद में बयान से मुकरना आम चलन हो गया है। लिहाजा, इस पर अदालत मूकदर्शक नहीं बन सकती। बदायूं के उधैती थाने में पीड़िता ने याचियों के खिलाफ सामूहिक दुष्कर्म, लूट और जान से मारने की धमकी देने के आरोप में मुकदमा दर्ज कराया था। इसका जब ट्रायल शुरू हुआ तो 27 सितंबर 2024 को समझौता कर पीड़िता ने कहा कि मुकदमा गलतफहमी में दर्ज कराया गया है। ऐसे में आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए याचिओं ने हाईकोर्ट में गुहार लगाई। समझौते की पुष्टि के बाद हाईकोर्ट ने याचियों के खिलाफ बदायूं की विशेष न्यायाधीश की अदालत में लंबित कार्यवाही को रद्द कर दिया। साथ ही कहा कि आरोप बेहद संगीन है, लेकिन जब पीड़िता ही मुकर गई तो दोषसिद्धि की संभावना भी न के बराबर है। अदालत का बहुमूल्य समय बर्बाद होने से बचाने के लिए मुकदमा रद्द करना ही न्यायहित में है। उन्होंने कहा कि इस फैसले का यह निष्कर्ष बिल्कुल नहीं है कि आरोपी निर्दोष हैं। यह सरासर बदले की भावना में कानून और अदालती प्रक्रिया के दुरुपयोग का मामला है। लिहाजा, दोनों पक्षकारों को तीन हफ्ते में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में दो-दो हजार रुपये बतौर हर्जाना जमा करना होगा।
