लेकिन बतौर मुख्यमंत्री उनके दोनों कार्यकाल विवादों से अछूते नहीं रहे. कई बार उनकी आलोचना हुई और सोशल मीडिया पर उनके बयान चर्चा का विषय बने.
कई वजहें चर्चा में रहीं, कोरोना काल में कथित कुप्रबंधन, सिस्टम पर कथित नियंत्रण की कमी, वेंटिलेटर को लेकर अति उत्साह और विवाद, राजकोट के पास हीरासर एयरपोर्ट और अन्य जगहों पर जमीन में कथित अनियमितताओं को लेकर विवाद, राजकोट में पुलिस अधिकारियों की कथित बर्बरता.
एक तरफ गुजरात में लोग ऑक्सीजन की कमी से मर रहे थे और उन्हें रेमडेसिविर इंजेक्शन नहीं मिल रहे थे, तो बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष पाटिल के पास 5,000 इंजेक्शन कहां से आए?
जब मरीजों के परिजन इस तरह के आक्रोश भरे सवाल पूछ रहे थे, तो रूपाणी का जवाब था - 'केवल सीआर को पता है, सीआर से पूछो.' संक्षेप में, इस मामले में 'मुझे नहीं पता.'
विजय रूपाणी ने विभिन्न अवसरों पर 'मुझे नहीं पता' जैसे उत्तर दिए और इसके बाद सोशल मीडिया पर 'मुझे नहीं पता' का ट्रेंड भी शुरू हो गया और कई मीम्स भी बनाए गए.
'मैं मुख्यमंत्री तब भी था जब मैं मुख्यमंत्री नहीं था'

दो बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद 11 सितंबर 2021 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद उनकी जगह पाटीदार समुदाय से आने वाले भूपेंद्र पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया.
2022 में दिए एक इंटरव्यू में रूपाणी ने कहा कि 10 सितंबर की रात को बीजेपी के एक राष्ट्रीय नेता ने उनसे कहा कि उन्हें इस्तीफा देना होगा और पार्टी के आदेश का सम्मान करते हुए उन्होंने अगले ही दिन इस्तीफा दे दिया.
इस्तीफा देने के एक सप्ताह बाद राजकोट के प्रमुख स्वामी सभागार में बीजेपी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए रूपाणी ने कहा, "मैं सीएम नहीं था, तब भी सीएम था, सीएम था तब भी सीएम था और आज भी सीएम हूं. सीएम का मतलब है, आम आदमी, आपके बीच का कार्यकर्ता और उस कार्यकर्ता या पार्टी को जो करना है, वो करना ही है."
"इसीलिए, मैंने इस्तीफा दे दिया. ऐसा इसलिए है ताकि राजकोट के कार्यकर्ता ये कर सकें. राजकोट में स्वर्गीय अरविंदभाई, स्वर्गीय चिमनकाका, स्वर्गीय केशुभाई, स्वर्गीय प्रवीण काका, वजुभाई. इन सभी ने हमारे अंदर संस्कार डाले हैं. बाकी का पद छोड़ना मुश्किल है. एक सरपंच का इस्तीफा मांगो! लेकिन हम ये इसलिए कह रहे हैं क्योंकि हम पद को कोई महत्व नहीं देते हैं."
जब रूपाणी इस सभा को संबोधित कर रहे थे तो वहां मौजूद कई बीजेपी कार्यकर्ताओं की आंखें नम हो गईं.
कौशिक मेहता ने मुख्यमंत्री पद से रूपाणी के इस्तीफे को बीजेपी द्वारा 'अवांछित निष्कासन' बताया.
कौशिक मेहता कहते हैं, "विजय रूपाणी बहुत मेहनती राजनेता थे. वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से एबीवीपी में शामिल हुए और फिर बीजेपी में शामिल हो गए. सौराष्ट्र में बीजेपी को मज़बूत करने में केशुभाई पटेल के बाद अगर किसी दूसरे नेता का नाम आता है तो वह विजय रूपाणी हैं. वह सालों तक कड़ी मेहनत करते रहे."
"सात विधानसभा चुनावों में जब तत्कालीन वित्त मंत्री पर्चा भर रहे थे, तब विजयभाई ने उनके डमी उम्मीदवार के तौर पर सात बार पर्चा भरा. इतनी मेहनत के बावजूद उन्हें वह मिला जिसके वे हकदार थे, मगर बहुत देर से."
मेहता आगे कहते हैं, "वे 2014 में ही सरकार में मंत्री बन पाए थे. हां, उन्हें अप्रत्याशित रूप से मुख्यमंत्री पद मिला था. लेकिन, मुख्यमंत्री बनने के बाद भी वे लगातार मेहनत करते रहे. इसलिए, जिस तरह से बीजेपी ने उन्हें बाहर किया, वह अशोभनीय था."
"यह सही है कि उन्होंने तत्कालीन उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल के साथ अपनी सीट बदली और राजनीतिक कारणों से उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे. लेकिन सरकारों पर ऐसे आरोप लगते रहते हैं. बीजेपी को उन्हें सम्मान के साथ जाने देना चाहिए था."
राजनीतिक सफर

विजय रूपाणी का जन्म 1956 में म्यांमार की राजधानी रंगून (अब यंगून) में हुआ था.
उनके पिता रसिकलाल रूपाणी वहां अनाज व्यापारी थे.
विजयभाई सात भाइयों में सबसे छोटे थे. विजयभाई के जन्म के कुछ महीने बाद म्यांमार में अस्थिरता के कारण रूपाणी परिवार राजकोट चला गया और रसिकलाल ने बॉल-बेयरिंग का बिजनेस शुरू किया.
विजय रूपाणी 1973 में एबीवीपी में शामिल हुए और 1996 में राजकोट के मेयर चुने गए. 2006 में वे राज्यसभा के सदस्य चुने गए. इसके बाद उन्हें गुजरात बीजेपी का महासचिव नियुक्त किया गया.
2012 में उन्हें गुजरात नगर निगम वित्त बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. 2014 में जूनागढ़ नगर निगम चुनाव के प्रभारी नियुक्त होने के बाद उन्होंने बीजेपी को उस चुनाव में जीत दिलाई.
उस समय जूनागढ़ नगर निगम गुजरात का एकमात्र नगर निगम था जहां बीजेपी सत्ता में नहीं थी.
उसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में विजय रूपाणी ने सौराष्ट्र-कच्छ की सभी आठों लोकसभा सीटों पर बीजेपी की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अपना राजनीतिक कद बढ़ाया.
2014 में राजकोट पश्चिम से विधायक वजुभाई वाला को कर्नाटक का राज्यपाल नियुक्त किए जाने पर उन्होंने सीट से इस्तीफा दे दिया था.
उसके बाद हुए उपचुनाव में बीजेपी ने विजय रूपाणी को टिकट दिया और उनकी जीत के बाद आनंदीबेन पटेल सरकार में रूपाणी को जल आपूर्ति मंत्री बनाया गया. उसके बाद वे कुछ ही समय में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री बन गए.
मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के एक साल बाद बीजेपी ने उन्हें पंजाब भाजपा का प्रभारी नियुक्त किया. 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने रूपाणी को दिल्ली की तीन सीटों का प्रभार दिया था.
मेहता कहते हैं, "लेकिन, मुझे लगता है कि वह मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने को पचा नहीं पाए. उन्हें यकीन नहीं हुआ कि पार्टी के लिए इतनी मेहनत करने वाले और इतना त्याग करने वाले को इस तरह हटाया जा सकता है."
व्यक्तिगत जीवन

रूपाणी एक स्टॉकब्रोकर थे और उन्होंने सौराष्ट्र-कच्छ स्टॉक एक्सचेंज के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया.
उनकी पत्नी अंजलि रूपाणी भी बीजेपी महिला मोर्चा की नेता हैं. उनके बेटे ऋषभ और बेटी राधिका विदेश में बस गए हैं.
अपने दूसरे बेटे पूजित की असामयिक मृत्यु के बाद उन्होंने उनकी स्मृति में पूजित रूपाणी मेमोरियल ट्रस्ट की स्थापना की और इसके माध्यम से जरूरतमंद बच्चों को शिक्षा प्रदान करने का काम किया.
उन्हें पतंग उड़ाने का शौक था और मुख्यमंत्री बनने के बाद भी वे हर उत्तरायण पर राजकोट आते थे और अपने परिवार और दोस्तों के साथ अपने घर की छत से पतंग उड़ाते थे.
जनता कहती हैं, "एक राजनेता के तौर पर उनमें असाधारण विनम्रता थी. वह सभी से मिलते थे और सबकी बातें सुनते थे. वह एक ऐसे नेता थे जो बहुत ही विनम्र थे और लोगों के बीच रहते थे."