शुक्रवार को जारी किए गए 2024-25 के भारत के आर्थिक प्रदर्शन के आंकड़ों में सभी के लिए कुछ न कुछ है। आशावादी नजरिए वाले लोग चौथी तिमाही में हुई मजबूत वृद्धि से खुश हो सकते हैं। निराशावादी लोग चार साल के कम सालाना वृद्धि के आंकड़े से हताश हो सकते हैं। हालांकि, यथार्थवादियों का आकलन यह है कि इन आंकड़ों में कुछ हद तक संयमित जश्न मनाने की वजहें हैं और निराशा की एक अच्छी-खासी खुराक भी है। चौथी तिमाही की 7.4 फीसदी की वृद्धि दर, इस तिमाही की अपेक्षित वृद्धि दर से काफी ज्यादा रही और यह अन्यथा निराशाजनक रहे वित्तीय वर्ष में सबसे तेज बढ़ोतरी थी। इसके मुख्य प्रेरक थे निर्माण क्षेत्र का दहाईं अंकों वाली वृद्धि फिर से हासिल कर लेना तथा कृषि क्षेत्र का मजबूत प्रदर्शन। ये दोनों क्षेत्र रोजगार के प्रमुख चालक भी हैं। सेवाओं में भी स्थिर और मजबूत वृद्धि जारी रही। दूसरी तरफ, मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की वृद्धि दर मात्र 4.8 फीसदी ही रही, जोकि पिछले साल की चौथी तिमाही में 11.3 फीसदी थी। समग्र आंकड़ों में भी एक हकीकत छिपी हुई है। कुल 7.4 फीसदी की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर काफी हद तक शुद्ध करों में 12.7 फीसदी की वृद्धि की वजह से हासिल हुई। कर संग्रह में यह उछाल सांख्यिकीय रूप से एक मजबूती देता है जिसके बिना वास्तविक आर्थिक गतिविधि में वृद्धि लगभग 6.8 फीसदी की होती। उपभोग व्यय पर बहुप्रचारित ‘महाकुंभ का प्रभाव’ भी साकार नहीं हुआ है। चौथी तिमाही दृ कुंभ वाली तिमाही - में निजी अंतिम उपभोग व्यय में वृद्धि छह फीसदी की रही, जोकि पांच तिमाहियों में सबसे धीमी है। हालांकि, पूंजी निर्माण में 9.4 फीसदी की मजबूत वृद्धि हुई क्योंकि सरकार ने आखिरकार अपने सुस्त पूंजी निवेश में तेजी ला दी। सरकारी अफसरों और केंद्रीय मंत्रियों ने 2024-25 में 6.5 फीसदी की वृद्धि, जोकि महामारी के बाद से सबसे धीमी है, पर यह कहते हुए संतोष जताया है कि यह अभी भी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज है और “विकास के लिए जूझते” वैश्विक वातावरण के संदर्भ में खराब नहीं है। ये सारी बातें सही हैं। फिर भी, इसे भारत के लिए ‘बुरा नहीं’ कहना नाकाफी है। यह दौड़ बाकी दुनिया के साथ नहीं है, बल्कि देश की बढ़ती जरूरतों के साथ तालमेल बनाए रखने की एक कोशिश है। साल 2047 तक ‘विकसित भारत’ बनाने का लक्ष्य रखने वाली मोदी सरकार को अपनी आकांक्षाओं के अनुरूप उच्चतर मानक अपनाने होंगे। अगर, जैसा कि आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है, 2047 तक विकसित भारत के लिए “कम से कम एक दशक तक हर साल लगभग आठ फीसदी की निरंतर आर्थिक वृद्धि” की जरूरत है, तो निश्चित रूप से भारत बहुत ही धीमी रफ्तार से आगे बढ़ रहा है। भले ही उसकी दिशा सही है। अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में, मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने कहा कि भारत कम मुद्रास्फीति और स्थिर विकास के दौर में प्रवेश कर रहा है। स्थिरता अच्छी बात हो सकती है, क्योंकि इसका मतलब है कि विकास के धीमा होने की संभावना कम है। फिर भी, इसका यह भी मतलब है कि विकास में उल्लेखनीय बढ़ोतरी की संभावना नहीं है। सरकार को इस बात पर विचार करना चाहिए कि क्या यह वाकई एक परिवर्तनशील अर्थव्यवस्था के लिए संतोषजनक स्थिति है।