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पोशीदा खतरेः राज्य द्वारा निगरानी और लोकतंत्र
  • 151171416 - AKANKSHA DUBEY 0 0
    01 May 2025 16:02 PM



फ़ास्ट न्यूज़ इंडिया 

राज्य द्वारा निगरानी (स्टेट सर्विलांस) व्यवस्थागत नियंत्रणों और देखरेख के अधीन होनी चाहिए और यह अपराध की काली दुनिया की नापाक गतिविधियों जैसी नहीं लगनी चाहिए। जैसा कि भारत के सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने कहा, सवाल यह नहीं है कि क्या राज्य स्पाइवेयर का इस्तेमाल कर सकता है, बल्कि यह है कि इसका जायज निशाना कौन लोग हो सकते हैं। किसी राज्य एजेंसी द्वारा राजनीतिज्ञों, न्यायाधीशों, धार्मिक नेताओं, सिविल सेवकों और पत्रकारों की कथित निगरानी पर सुनवाई के दौरान, पीठ साफ तौर पर यह चाह रही थी कि निगरानी की शक्तियों व औजारों के मनमाने इस्तेमाल पर नियंत्रण हो। सरकार ने न तो यह माना है और न ही इनकार किया है कि वह पेगासस का इस्तेमाल करती है। पेगासस इजराइल-निर्मित सैन्य स्तरीय स्पाइवेयर है, जो केवल राज्य एजेंसियों को बेचा जाता है और इसका इस्तेमाल बहुत तरह के लोगों को निशाना बनाने के लिए किया गया। इस औजार के वजूद और इसके इस्तेमाल के बारे में वैश्विक खुलासों के बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। उसने एक तकनीकी समिति नियुक्त की, जिसकी जांच को कथित तौर पर निशाने पर रहे लोगों और सरकार की ओर से सहयोग के अभाव ने सीमित बनाया। जब यह मामला न्यायपालिका के समक्ष था, उस समय भी आई-फोन (जो पेगासस का मुख्य निशाना था) का इस्तेमाल करने वाले कई हाई-प्रोफाइल लोगों को फोन-निर्माता की ओर से इस आशय के सुरक्षा अलर्ट मिले कि वे संदिग्ध राज्य निगरानी का निशाना हैं। दुनियाभर के राज्यों ने निशाने पर रहे लोगों – जिन्होंने लगातार विकसित हो रही तकनीकों का इस्तेमाल कर अपने संवाद को ताक-झांक से महफूज बनाने का प्रयास किया - की जासूसी के लिए कानून से इतर उपायों का इस्तेमाल किया है। पकड़ में आने से बचने के लिए आतंकवादी व अन्य गैर-राज्य कर्ता, और अपराधी इनक्रिप्शन व अन्य उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं क्योंकि वे व्यापक समाज को नुकसान पहुंचाने की साजिश करते हैं। पर्याप्त कानूनी व तकनीकी साधनों के बगैर, राज्य उभरते राष्ट्रीय सुरक्षा खतरों से निपटने में अप्रभावी साबित होगा। इस संदर्भ में, और खासकर जम्मू एवं कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादी हमले की पृष्ठभूमि में, सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रासंगिक सवाल सामने रखा है। कानून लागू करने में यथोचित प्रक्रिया और पारदर्शिता को बेशर्मी से नकारे जाने के बचाव में, मनमाने ढंग से राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला दिये जाने की सरकार की प्रवृत्ति की सुप्रीम कोर्ट द्वारा अतीत में आलोचना की जाती रही है। सरकारी कर्ताओं का एक परेशान करने वाला चलन यह भी है कि वे अक्सर राजनीतिक विरोधियों पर राष्ट्र-विरोधी होने का लेबल लगाते हैं। राज्य अगर निगरानी की ज्यादा शक्तियां चाहता है, तो उसे उसी अनुरूप मजबूत नियम बनाने होंगे जिससे लोगों का बचाव हो सके। राष्ट्रीय सुरक्षा कार्यपालिका के मनमानेपन और व्यक्तिगत अधिकारों व गरिमा के उल्लंघन का बहाना नहीं हो सकती। ऐसे प्रोटोकॉल स्थापित किये जाने चाहिए, जो निगरानी में स्पष्ट परिभाषित मानकों और कदमों का पालन सुनिश्चित करें। सुरक्षा संबंधी चिंताएं दूर हो जाने पर, और उचित समयसीमा के भीतर, इन प्रक्रियाओं को सरकार की अन्य शाखाओं और आम जनता के पर्यवेक्षण के अधीन होना चाहिए। किसी भी सूरत में, किसी राज्य एजेंसी के पास देश की लोकतांत्रिक राजनीति में दखलअंदाजी करने, या असहमति के स्वरों और सक्रियतावाद को कुचलने का इख्तियार नहीं हो सकता। अनिश्चित सुरक्षा वातावरण से निपटने की कोशिश करते समय, भारत के संवैधानिक लोकतंत्र की दिशा सुदृढ़ बनी रहनी चाहिए।

 

 

 

 

 



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