कश्मीर सिर्फ एक जमीन का टुकड़ा नहीं, बल्कि इतिहास, लोककथाओं और संस्कृति की परतों में लिपटा हुआ एक ऐसा नाम है, जिसकी गहराई में उतरते ही अनगिनत कहानियां उभर आती हैं। कभी ‘धरती का स्वर्ग’ कहा जाने वाला यह इलाका आज भी अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है, लेकिन इसके नाम की उत्पत्ति (Kashmir Name Origin) और इतिहास भी उतना ही दिलचस्प है। आइए जानें।
कश्मीर की सदियों पुरानी लोककथा
कश्मीर शब्द की जड़ें एक पुरानी लोककथा में मिलती हैं। कहा जाता है कि इस घाटी का अस्तित्व एक विशाल झील को सुखाकर बना था। जी हां, हजारों साल पुरानी लोककथा कहती है कि कश्मीर कभी एक विशाल झील हुआ करता था। यहां कोई इंसान नहीं रहता था, बस पानी ही पानी था। फिर आए महर्षि कश्यप, जिन्होंने बारामूला की पहाड़ियों को काटकर उस झील का पानी बाहर निकाला, जिससे यहां इंसानों के बसने लायक जमीन बनी, जो इतनी खूबसूरत थी कि उसे “धरती का स्वर्ग” कहा जाने लगा। यही भूमि बाद में बनी “कश्यपामर”, फिर “कश्यमीर” और आखिरकार आज का “कश्मीर”।
12वीं सदी के इतिहासकार कल्हण की पुस्तक राजतरंगिणी में भी इस झील और कश्यप ऋषि की कथा का उल्लेख मिलता है। यह पहली बार था जब किसी भारतीय ग्रंथ में कश्मीर को ऐतिहासिक रूप से दर्ज किया गया। बता दें, जम्मू और कश्मीर सरकार के योजना विकास और निगरानी विभाग की वेबसाइट में भी इस बात का उल्लेख मिलता है।
क्या है कश्मीर नाम का मतलब?
संस्कृत में “का” का मतलब होता है जल (पानी) और “शमीरा” का अर्थ होता है सूखना। इस हिसाब से ‘कश्मीर’ का शाब्दिक अर्थ हुआ- “सूखा हुआ जल” यानी एक ऐसी भूमि जो पानी से बाहर आई हो।
एक अन्य मत के अनुसार, ‘कस’ का अर्थ है नहर या धारा और ‘मीर’ का मतलब होता है पर्वत। इस व्याख्या से कश्मीर का अर्थ हुआ-“पर्वतों के बीच बहती जलधाराओं की भूमि”।
प्राचीन ग्रंथों और विदेशी दस्तावेजों में कश्मीर
कश्मीर सिर्फ भारत के ही नहीं, पूरी दुनिया के विद्वानों और यात्रियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। 550 ईसा पूर्व में ग्रीक इतिहासकार हेकेटियस ने इस क्षेत्र को ‘कासपापाइरोस’ कहा। इसके बाद, रोमन खगोलविद टॉलेमी (150 AD) ने इसे 'कास्पेरिया' कहा, हालांकि उन्होंने इसकी सीमाएं कुछ ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर दिखाईं।
चीनी अभिलेखों में भी कश्मीर का उल्लेख मिलता है- इसे ‘की-पिन’ और तांग वंश के काल में ‘किया-शी-मी-लो’ कहा गया। यह जिक्र 7वीं और 8वीं सदी के दस्तावेजों में मौजूद है।
अलबरूनी की आंखों से देखा गया कश्मीर
11वीं सदी के ख्वारज्मी विद्वान अलबरूनी, जिन्हें भारत का पहला मानवविज्ञानी भी कहा जाता है, उन्होंने किताब-उल-हिंद में कश्मीर का विशेष उल्लेख किया है। उन्होंने यहां की भौगोलिक संरचना के साथ-साथ भाषा, समाज, धर्म और संस्कृति का गहन विश्लेषण किया।
उनके अनुसार, कश्मीर मध्य एशिया और पंजाब के मैदानों के बीच एक पर्वतीय क्षेत्र है- संस्कृति और प्रकृति दोनों की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध।
दूर देशों तक फैली पहचान
13वीं सदी के इतालवी यात्री मार्को पोलो ने भी कश्मीर का उल्लेख किया। उन्होंने इसे ‘काशीमुर’ नाम से पुकारा और यहां के निवासियों को ‘काश्मीरियन’ कहा। उनके लेखों से स्पष्ट होता है कि कश्मीर की पहचान उस समय भी दूर देशों तक पहुंच चुकी थी।
एक बेहद दिलचस्प और बहस योग्य सिद्धांत प्रो. फिदा हसनैन ने प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार, कश्मीरी लोगों की जड़ें बगदाद के पास बसे ‘कस’ नामक यहूदी समुदाय से जुड़ी हो सकती हैं। यह जाति धीरे-धीरे अफगानिस्तान होते हुए हिंदुकुश पार करके कश्मीर पहुंची और यहां बस गई।
इस सिद्धांत के अनुसार, इस जाति ने पहले ‘कशमोर’ नाम की बस्ती बसाई और फिर ‘कश्तवार’ तथा अंत में ‘कश्मीर’ का निर्माण हुआ। हालांकि, यह सिद्धांत अभी व्यापक रूप से स्वीकार नहीं है, लेकिन यह कश्मीर की विविध पहचान का एक और पहलू जरूर दिखाता है।
राजा जंबुलोचन की भूमिका
कई स्थानीय लोग मानते हैं कि कश्मीर का नाम राजा जंबुलोचन के समय पड़ा, जिन्होंने 9वीं सदी में इस क्षेत्र पर शासन किया। उनके द्वारा बसाए गए शहरों और प्रशासनिक व्यवस्था से कश्मीर को एक सांस्कृतिक ढांचा मिला और संभवतः यही समय था जब इस क्षेत्र को ‘कश्मीर’ के नाम से पुकारा जाने लगा।
कश्मीर कोई साधारण नाम नहीं है। यह एक ऐसा शब्द है जो इतिहास, भाषा, भूगोल, लोककथा और संस्कृति का संगम है। हर व्याख्या, चाहे वह ऋषि कश्यप की हो, विदेशी यात्रियों की हो या फिर यहूदी कड़ी से जुड़ी हो- कश्मीर की पहचान को और गहराई देती है।
यहां की वादियां जितनी सुंदर हैं, उतनी ही रहस्यमयी इसकी कहानी भी है और शायद इसीलिए, कश्मीर सिर्फ एक जगह नहीं, एक एहसास है, जिसे समझने के लिए दिल और दिमाग दोनों चाहिए।
