अहमदाबाद में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी)/कांग्रेस कार्य समिति के 8-9 अप्रैल को हुए अधिवेशन का मकसद जमीनी स्तर पर सांगठनिक सुधार और वैचारिक स्पष्टता लाने के प्रति कांग्रेस का इरादा जाहिर करना था। भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में समृद्ध इतिहास वाला गुजरात का यह राजधानी शहर उस संकट को दर्शाने के लिए एक प्रतीकात्मक स्थान था जिससे पार्टी जूझ रही है। गुजरात में कांग्रेस 30 साल से सत्ता से बाहर है और अब यह राज्य राजनीति और शासन के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मॉडल से बहुत करीब से जुड़ा है। इस सम्मेलन ने धर्मनिरपेक्षता, बहुलतावाद, संघवाद, और समावेशी विकास जैसे संवैधानिक मूल्यों के प्रति पार्टी की प्रतिबद्धता की दोबारा तस्दीक की। यही वो सिद्धांत हैं जो एक समय कांग्रेस को परिभाषित करते थे, और उसका आरोप है कि ये अब खतरे में हैं। पार्टी के नेता राहुल गांधी ने राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना कराने और आरक्षण पर 50 फीसदी की हदबंदी हटाने की मांग करते हुए, सामाजिक न्याय पर फोकस को दोहराया। ये राज्यों में कांग्रेस सरकारों, साथ ही केंद्र में उसके द्वारा नेतृत्व की जा सकने वाली किसी सरकार के लिए भावी नीतिगत पहलकदमियों का आधार बनेंगे। कांग्रेस के पुनरुत्थान का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू जमीनी स्तर पर कारगर पार्टी संगठन बनाने की उसकी क्षमता पर निर्भर है। अपनी आला-कमान संस्कृति से हटने का संकेत देते हुए, पार्टी ने एलान किया कि जिला कमेटियां और जिला-स्तरीय नेतृत्व निर्णयों और जवाबदेही का आधार-स्तंभ बनेंगे। इन विचार-विमर्शों से वापसी करने के प्रति पार्टी की गंभीरता का संकेत मिला, लेकिन आदर्शवाद और प्रतीकवाद से इतर बेहद अहम सवाल अब भी बने हुए हैं। उसकी लगभग सभी राज्य इकाइयां सत्ता संघर्षों और गुटबाजियों से ग्रस्त हैं, जिससे अक्सर पार्टी की चुनावी संभावनाओं को नुकसान पहुंचता है। क्या जिला-स्तर पर निर्णय लिये जाने से गुटबाजी तेज होगी या इस पर लगाम लगेगी, इस सवाल का जवाब नयी योजना के लागू होने से ही मिल सकता है। यह कोशिश निरंकुश क्षेत्रीय क्षत्रपों को जमीनी नेताओं और आला-कमान के बीच मसलने की हो सकती है। यह भी अस्पष्ट है कि जब संसाधनों, संदेश-प्रेषण और योजना बनाने के मामले में राजनीति लगातार केंद्रीकृत होती जा रही है, तब कांग्रेस जिलों को प्राधिकार सौंप कर नतीजे कैसे हासिल कर सकती है। एक स्पष्ट रोडमैप के अभाव में – खासकर जो भारत के युवाओं और उभरते मध्य वर्ग की आकांक्षाओं को संबोधित करे – पार्टी के सामने यह खतरा है कि वह भविष्योन्मुख दृष्टि निर्मित करने के बजाय अतीतमोह में न चली जाए। अपनी विरासत को आगे बढ़ने का आधार बनाते हुए, कांग्रेस को अब राजनीतिक कल्पनाशीलता, रणनीतिक स्पष्टता और सांगठनिक अनुशासन की जरूरत है। अहमदाबाद अधिवेशन को, अपनी समस्त प्रतीकात्मकता और गंभीरता के बावजूद, एक शुरुआत के रूप में ही देखा जाना चाहिए। कार्य अभी प्रगति पर है, और आने वाले महीनों में इस बात का इम्तिहान होगा कि क्या साबरमती के तट पर हुआ अधिवेशन सचमुच एक बड़ा मोड़ है या पार्टी के नवीकरण की चल रही कोशिश में बस एक और घटना।