फ़ास्ट न्यूज़ इंडिया
बिहार में पार्टियां व गठबंधन, और विभिन्न जातीय व हित समूह, इस साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले अपनी ताकत को यथासंभव अधिकतम बनाने के लिए नये सिरे से अपनी रणनीति तय कर रहे हैं। हरियाणा में लगातार तीसरी बार भाजपा की जीत और आम चुनाव 2024 में अपने नुकसान की भरपाई एनडीए द्वारा महाराष्ट्र में सत्ता में वापसी से किये जाने के बाद, सभी निगाहें अब बिहार पर हैं। दोनों ध्रुवों पर – एक तरफ एनडीए और दूसरी तरफ राजद, कांग्रेस और वाम दलों का महागठबंधन – बदलते अंत: दलीय और अंतर-दलीय समीकरण भूमिका निभा रहे हैं। मंगलवार को, राजद और कांग्रेस नेताओं ने दिल्ली में मुलाकात की और वे आगे भी चर्चा करेंगे। पिछले महीने, गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य की दो-दिवसीय यात्रा की, और 24 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मधुबनी दौरे की उम्मीद है। तकरीबन दो दशकों से जनता दल (यूनाइटेड) के पिछलग्गू की भूमिका निभाने वाली भाजपा अब नेतृत्वकारी भूमिका के लिए बेचैन है। दिल की बात जुबान पर लाते हुए, हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने गुड़गांव में एक कार्यक्रम में कहा कि बिहार के उप-मुख्यमंत्री और भाजपा नेता सम्राट चौधरी विधानसभा चुनाव में “जीत का परचम” लहरायेंगे। इस पर राजद ने मजा लेते हुए सवाल किया कि क्या भाजपा ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को छोड़ दिया है, जिसके बाद भाजपा को आनन-फानन में सफाई देनी पड़ी। बढ़ती उम्र और कमजोर सेहत को देखते हुए, नीतीश कुमार पर सभी की नजर है। महागठबंधन में अविश्वास की स्थिति है। कांग्रेस और वाम दल इस बात को लेकर चिंतित हैं कि राजद सीट-बंटवारे समझौते को आखिरी समय तक लटकायेगा, जिससे कुछ कर पाने की बहुत कम गुंजाइश बचेगी। इसके अलावा, कांग्रेस ने शिकायत की है कि अक्सर उसे कमजोर सीटें दी जाती हैं और बाद में खराब स्ट्राइक रेट के लिए आलोचना की जाती है। उसने 2020 के चुनाव का हवाला दिया, जिसमें वह 70 में से 19 सीटें ही जीत सकी थी। भाकपा (माले) ने 2020 में, 19 में से 12 सीटें जीतकर शानदार प्रदर्शन किया था। उसकी शिकायत है कि मजबूत कैडरों के बावजूद, उसे कुल सीटों में छोटा हिस्सा दिया जाता है। राजद की अपनी खुद की चुनौतियां भी हैं। अगर साल 2015 और 2022 में छोटे अंतराल को छोड़ दें तो, साल 2005 के बाद वह सत्ता में वापसी करने में अक्षम रही है। उसका वोट शेयर अपरिवर्तित बना हुआ है और बार-बार सत्ता के करीब पहुंचने के बावजूद, अंतिम मील को पार कर पाना उसके लिए बहुत दुष्कर प्रतीत होता है। अग्रणी पार्टियां भीतरी और बाहरी चुनौतियों का सामना कर रही हैं, लेकिन एक व्यापक राजनीतिक फेर-बदल का चक्र भी चल रहा है। केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान से अलग हो चुके उनके चाचा पशुपति कुमार पारस ने, जो पहले वाली लोक जनशक्ति पार्टी के दो धड़ों में से एक का नेतृत्व करते हैं, सोमवार को एनडीए से अपना रिश्ता तोड़ लिया। राजनीतिक रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत कुमार की जन सुराज बड़े-बड़े दावों के बावजूद पैर जमाने की जद्दोजहद कर रही है। कुल मिलाकर, बिहार में खुला मुकाबला होने वाला है, जहां कई कारक भूमिका निभायेंगे।
