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परंपरा हो रही लुप्त, अब कम नजर आते है होली के बड़कुले आधुनिकता की चकाचौंध में दम तोड़ रही परंपराएं*
  • 151173909 - AKHIL KUMAR GURDENIYA 0 0
    13 Mar 2025 21:08 PM



फास्ट न्यूज़ राजस्थान 

*जयपुर:* आधुनिकता में रंग-बिरंगे त्योहार की कई साख पर भी समय के साथ दम तोड़ती नजर आ रही है। ऐसी ही एक परंपरा है गोबर के बड़कुले की। एक समय था जब होली के दिन कई पहले ही महिलाएं और समुदाय के लोग बड़कुले उत्सव मनाते थे ताकि उनकी होली के दिन पूजा कर होलिका दहन के लिए उपयोग किया जा सके। लेकिन अब बुजुर्ग की सीख से कुछ कॉलेज ही बड़कुले बन गए। साथियों की माने तो शहर में अपवित्र में युवतियां होली के दस दिन पहले ही गाय के गोबर से तरह-तरह के डिजाइन के बडकुले तैयार करने लगी थीं। बड़कुलों को अलग-अलग डिज़ायन में बनाया गया था। लेकिन अब यह पारंपरिक आधुनिकता की अवधारणा का आदर्श बन गया है।

*बडकुले का विशेष महत्व:*

बड़कुले बनाने में सिर्फ गाय के गोबर का ही उपयोग होता है। बड़कुले को होलिका दहन से पहले पूजा करनी होती है। होलिका दहन के समय आकर्षक माला को सिर के ऊपर से सात बार कुकर होली में डाला जाता है। ऐसी मान्यता है कि इससे सारी विपदाएं दूर हो जाती हैं। गोबर से बने बड़कुले को आकर्षक बनाने के लिए पेरू से बनाया जाता है और फिर होलिका दहन के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

*बढ़ता है सकारात्मक राक्षस:*

गोबर के निर्माता-तलवार बने हुए हैं। पूर्णिमा के दिन मंगल पूजा के बाद दहन होता है। पंडित अशोक व्यास के अनुसार गाय का गोबर शुभता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है। जब यह जलता है तो जाने नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती हैं। यही कारण है कि यज्ञ और घर में भी गाय के गोबर का उपयोग किया जाता है।

 



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