शनिवार रात लगभग 11:30 बजे मैं ऑफिस से बाइक पर घर लौट रहा था, तभी मैंने देखा कि एक लड़की सलवार सूट पहने सड़क पर मदद के लिए इशारा कर रही थी। मैंने बाइक रोकी, लेकिन एक ऑटो हमारे पास से निकल गया।
मैंने कहा, "जी कहिए..."
वह गुस्से में बोली, "मैंने ऑटो को रुकने का इशारा किया था, इतनी देर में ऑटो आया था और आपकी वजह से वह भी चला गया।"
मुझे भी बुरा लगा, सोचा कि इतनी रात को अकेली लड़की मेरी गलती की वजह से परेशान हो गई। मैंने तुरंत माफी मांगी और लिफ्ट के लिए पूछा, लेकिन उसने साफ मना कर दिया। मैंने फिर कहा, "रात काफी हो चुकी है और आप अकेली हैं।"
मगर वह गुस्से में थी और कुछ सुनने को तैयार नहीं थी। मैंने सोचा कि चला जाऊं, लेकिन फिर मन में आया कि अगर कुछ गलत हो गया तो मुझे इसका दोषी माना जाएगा। मैंने कहा, "ठीक है, जब तक आपको ऑटो नहीं मिलता, मैं यहीं खड़ा रहूंगा क्योंकि गलती मेरी है।"
वह कुछ नहीं बोली। आधा घंटा और बीत गया, अब समय रात के 12 बजे के पार हो गया। मैंने फिर से लिफ्ट देने की पेशकश की और कहा, "अब तक आधा सफर तय कर लिया होता, यहाँ खड़े रहने से कोई फायदा नहीं है।" लेकिन उसने अनसुना कर दिया। मैं उलझन में था, उसे अकेले छोड़ने का मन नहीं कर रहा था। मेरे मन में बेचैनी थी कि कहीं कुछ गलत न हो जाए। फिर सोचा, "जब मेरे मन में इतनी घबराहट है, तो वह तो एक लड़की है और मैं उसके लिए अजनबी हूँ, कैसे मुझ पर विश्वास करेगी?"
अचानक मुझे एक उपाय सूझा। मैंने कहा, "देखो, मेरे घर में भी तुम्हारे जैसी एक छोटी बहन है और तुम भी वैसी ही हो। मेरी मानो, यहाँ इतनी रात को अकेले रहना ठीक नहीं है। प्लीज मेरे साथ बाइक पर चलो, जहां तक तुम्हें अच्छा लगे।"
मेरे इन शब्दों से वह थोड़ी राहत महसूस करने लगी और बोली, "आप जाइए, मैं कोई न कोई उपाय कर लूंगी।" मैंने कहा, "मुझे यहाँ रुके एक घंटा हो गया है। ऑटो तो दूर, आदमी भी नजर नहीं आ रहा। प्लीज चलो।"
वह फिर भी तैयार नहीं हुई। मैंने अपना पर्स खोला और उसे दिखाया, "देखो, इसमें मेरी फोटो है, पहचान पत्र है, ड्राइविंग लाइसेंस और आधार कार्ड है। इसे अपने पास रख लो, जब सुरक्षित जगह पहुँच जाओ तो लौटा देना।"
उसने मेरा आधार कार्ड देखा और कहा, "दीपक..."
मैंने कहा, "हां, मेरा नाम दीपक है। देखो, अब प्लीज मना मत करना। तुम्हारे घर में तुम्हारे माता-पिता, भाई-बहन इंतजार कर रहे होंगे। वैसे मेरे भी मम्मी-पापा और बहन इंतजार कर रहे हैं, चलो।"
वह थोड़ी सी मुस्कुराई और बाइक पर बैठ गई। मैंने पूछा, "तुम्हारा घर कहाँ है?"
वह बोली, "आप चलते रहो, जहां लगेगा बता दूंगी।"
लगभग एक घंटा लगातार बाइक चलती रही, वह कुछ नहीं बोली। लगभग 40 किलोमीटर के बाद वह बोली, "बस, यहीं रोक दो।" और तुरंत एक सड़क से कॉलोनी की ओर जाने वाले रास्ते पर दौड़ पड़ी। कुछ ही मिनटों में वह मेरी आँखों से ओझल हो गई।
घर पहुंचा तो तीन बज चुके थे। पापा बहुत गुस्से में थे, मम्मी और बहन भी जाग रहे थे। यकीनन वे चिंतित थे और गुस्सा भी। बिना कुछ बताए मैं चुपचाप अपने कमरे में चला गया।
अगले दिन रविवार था, सो आराम से सो रहा था। अचानक ग्यारह बजे छोटी बहन ने आकर झकझोरा, "भैया, उठो कोई लड़की आई है, उसके मम्मी-पापा भी हैं। क्या कोई लफड़ा कर दिया है क्या?" और हंसने लगी, "पापा बुला रहे हैं नीचे, जल्दी चलो।"
मैंने कहा, "पागल है, मैं और लफड़ा? शैतान कहीं की।"
अचकचाई नींद में तुरंत बनियान पहनकर नीचे आया। देखा तो वही रात वाली लड़की और उसके साथ एक अंकल-आंटी थे। यह देखकर मैं हैरान रह गया।
मैं कुछ पूछता, उससे पहले वह उठकर आई और बोली, "भैया, हैरान हो गए ना, मैं यहाँ कैसे आई? आपका पर्स जिसमें आपका पैन कार्ड, आधार कार्ड है, उसी से पता लेकर मम्मी-पापा के साथ आई हूँ। आपने रात में मेरी इतनी मदद की और मैंने आपको धन्यवाद तक नहीं कहा। उल्टा आपके जरूरी दस्तावेज भी ले गई। पहले थैंक्यू, फिर सॉरी। जैसे आपने कहा था, मैं भी आपकी छोटी बहन जैसी हूँ।"
इसके बाद उसके मम्मी-पापा ने मुझे ढेरों आशीर्वाद दिए और मेरी काफी तारीफ की। फिर अपने यहां आने का निमंत्रण देकर वे लोग चले गए। उनके जाते ही पापा ने मुझे सीने से लगा लिया और कहा, "मुझे गर्व है तुझ पर दीपक, तूने एक अच्छे बेटे वाली बात की। मगर रात को ही बता देता तो अच्छा होता, बेकार में तुझे डांटा मैंने।"
मैंने कहा, "पापा, आप भी तो मेरी भलाई के लिए ही चिंतित थे।" पापा ने एक बार फिर से मुझे सीने से लगा लिया और इस बार मम्मी और छोटी बहन भी आकर मुझसे लिपट गईं।
दोस्तो, मुझे मेरे पापा ने बचपन से लेकर आज तक एक बात ही सिखाई है, "अकेली लड़की मौका नहीं, जिम्मेदारी होती है हमारी।"
