जम्मू कश्मीर सुंदरबनी। ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। वैराग्य के अभ्यास से सधता है मन* मनुष्य का मन बहुत चंचल होता है, उसका एक जगह पर टिक पाना सरल नहीं होता, लेकिन चंचल स्वभाव के कारण मन की शक्तियां भी बिखरी रहती हैं और शक्तिशाली होते हुए भी मन अपनी शक्तियों का उपयोग नहीं कर पाता। कुछ मनुष्यों की स्थिति तो यहां तक हो जाती है कि उनका मन कमजोर प्रतीत होता है और रूग्ण भी हो जाता है। जबकि यदि मन का विकास किया जाए, उसकी शक्तियों को एकत्रित करके उनका सदुपयोग किया जाए, तो यही मन अपरिमित संभावनाओं के द्वार भी खोल देता है। हांलाकि मन को एकत्रित करना सरल कार्य नहीं होता, लेकिन यदि हम मन के रंग रूप, उसके लक्षण, चरित्र और उसके कार्य करने के तौर तरीकों को जान लें, तो हम उसे नियंत्रण में रख सकते हैं। जिस तरह घोड़े की आदत को जाने बिना उसे साधना संभव नहीं होता, उसी तरह मन के बारे में जाने बिना उसे वस में करना संभव नहीं होता। हालाकि हर व्यक्ति का मन अलग अलग होता है, इसलिए उसे साधने के तरीके भी अलग अलग होंगे। फिर भी मन से संबंधित कुछ ऐसी बाते हैं, जिन्हे जानना सबके लिए जरूरी है। गौतम बुद्ध ने एक बार कहा था-मन समस्त इंद्रियों की शक्तियों में उत्कृष्ट है। सभी सापेक्ष विचार मन में ही पैदा होते हैं। मन सभी संवेदनाओं का अग्रगामी है। इस भौतिक विश्व के समस्त तत्वों की अपेक्षा मन सबसे सूक्ष्म है। समस्त बिषय एवं चेतना मन में ही उत्पन्न होते हैं यदि कोई शुद्ध मन से बोलता या काम करता है तो आनंद उसकी छाया के समान उसका अनुसरण करता है। हमारा मन न तो अच्छा होता है न ही बुरा। वह पानी की तरह होता है। उसमें जैसा रंग डाल दिया जाए, वैसा ही वह हो जाता है।मनुष्य इसमें अपने विचारों, इच्छाओं, कल्पनाओं,अनुभव और संकल्प- विकल्प के जितने और जैसे रंग डालता जाएगा, वह वैसा ही बनता चला जाएगा। जब हम मन के बिना हो ही नहीं सकते, तो वह अच्छा और बुरा कैसे हो जाएगा अतः हम उसे जैसा बनाएंगे, वह वैसा ही हो जाएगा। यदि घडा सुडौल नहीं बन पाया, तो इसमें घडे का क्या दोष? यह तो कुम्हार का दोष है कि उसने घडे को ऐसा गढा। इसी तरह हमारा मन गीली मिट्टी के लौंदे की तरह होता है। व्यक्ति उससे क्या बनाना चाहता है, यह उस पर निर्भर करता है। फिर भी मन की प्रकृति - हठी जिद्दी और दुराग्रही है, लेकिन यह भी तब है, जब हम मन की बात मानें,मन के अनुसार चलें। अन्यथा मन व्यक्ति का बहुत अच्छा सारथी भी है, यानी वह किसी भी आज्ञा का बहुत अच्छे से पालन करने वाला भी है। व्यक्ति का मन एक दर्पण की तरह भी होता है यानी उसके सामने जैसा भी कुछ आता है, उसी का प्रतिबिंव मन दिखाता है।
