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माइग्रेशन के फायदे
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इंटरनैशनल माइग्रेशन आउटलुक की ताजा रिपोर्ट बताती है कि अमीर देशों की नागरिकता लेने के मामले में भारतीय अव्वल हैं। 2019 से ही भारत ऑर्गनाइजेशन फॉर इकॉनमिक कोऑपरेशन एंड डिवेलपमेंट देशों के नए नागरिकों के मूल राष्ट्र के रूप में अपना प्रमुख स्थान बनाए हुए है। 2020 में भारत चीन को इस मामले में पीछे छोड़ चुका है। ध्यान रहे, श्रम की कमी से जूझते इन देशों के लिए ये नए नागरिक काफी उपयोगी साबित हो रहे हैं। यही वजह है कि हाल के वर्षों में ओईसिडी देशों ने इस तरफ ध्यान दिया। नतीजा यह कि इन देशों में आने वाले नए परमानेंट-टाइप माइग्रेंट की संख्या में खासी बढ़ोतरी देखने को मिली है। पिछले साल यानी 2022 की ही बात करें तो ओईसिडी देशों में आने वाले परमानेंट-टाइप माइग्रेंट्स की संख्या 61 लाख दर्ज की गई जो सीधे 26 फीसदी की बढ़ोतरी है। ध्यान रहे, इन 61 लाख में से 28 लाख भारतीय हैं। पूरी दुनिया के लिहाज से देखें तो भी ग्लोबल माइग्रेंट इनफ्लो में भारत का योगदान करीब 7.5 फीसदी है। यह स्थिति उन देशों के लिए तो फायदेमंद है ही, खुद भारत के लिए भी कम लाभदायक नहीं साबित हुई है। अव्वल तो विदेश जाने वाले इन लोगों से रेमिटेंस हासिल करने के मामले में भी भारत नंबर वन पर है। 2022 में यह रकम 111 अरब डॉलर यानी देश की जीडीपी का 3.3 फीसदी थी। स्वाभाविक ही इस रकम से खपत में इजाफा होता है जिससे इकॉनमी को मजबूती मिलती है। लेकिन इसके और भी बहुत सारे फायदे हैं जो अलग-अलग रूपों में सामने आते हैं। इनका ठोस अंदाजा तब होता है जब हम इन माइग्रेंट्स के बदलते स्वरूप पर ध्यान देते हैं। वर्ल्ड बैंक के मुताबिक देश को मिलने वाले रेमिटेंस का 36 फीसदी अमेरिका, इंग्लैंड और सिंगापुर के हाई-स्किल्ड माइग्रेंट्स से आता है। यानी इन माइग्रेंट्स का सबसे बड़ा हिस्सा टेक इंडस्ट्री में खप रहा है। और, इस तरह धीरे-धीरे सबसे गतिशील आर्थिक क्षेत्र में भारत और दुनिया के बीच एक पुल बनता जा रहा है। इसका एक बड़ा फायदा कोलैबरेशंस के जरिए भारत में हो रहे निवेश और तकनीकी हस्तांतरण में भी देखा जा सकता है। विकसित देशों में हो रहे माइग्रेशन के इन फायदों के बीच यह बात भी ध्यान में रखने लायक है कि इस माइग्रेशन के पीछे सबसे बड़ा फैक्टर होता है बेहतर अवसरों की तलाश जिसकी इन देशों के मुकाबले अपने यहां कमी है। अगर हमें 2047 तक विकसित देश का स्टेटस हासिल करने का लक्ष्य पाना है तो तीन बुनियादी पहलुओं पर खास ध्यान देना होगा- शिक्षा, रोजगार और जीवन स्तर। दो-चार प्रतिष्ठित संस्थान बनाना काफी नहीं है। देश के शिक्षा संस्थान हाई-स्किल्ड युवा देने लगें तो बेहतर रोजगार के हालात बनेंगे जिससे क्वॉलिटी ऑफ लाइफ बेहतर होगी। और फिर विकसित देश बनने का सपना भी दूर नहीं रह जाएगा।

 


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