भारत के आठ प्रमुख क्षेत्रों में उत्पादन जून महीने में उत्साहजनक रूप से बेहतर हुआ है और उत्पादन में साल-दर-साल आधार पर बढ़ोतरी का अनुमान पांच महीने के उच्चतम स्तर 8.2 फीसदी पर पहुंच गया है। इस्पात, सीमेंट और बिजली सहित सात क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। इस्पात क्षेत्र, जोकि 18 फीसदी से कम भार के साथ आठ मूलभूत उद्योगों के सूचकांक का तीसरा सबसे बड़ा घटक है, ने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। इस प्रमुख मिश्र धातु के उत्पादन में 21.9 फीसदी की बढ़ोतरी की वजह से सूचकांक में व्यापक प्रगति हुई। और सीमेंट क्षेत्र ने मांग में जारी तेजी को दर्शाते हुए और मानसून की शुरुआत की वजह से पिछले दो महीनों के दौरान इस तेजी में थोड़ी नरमी के बावजूद लगभग दहाई अंकों में वृद्धि दर्ज की है।
अप्रैल-जून की अवधि में विभिन्न क्षेत्रों में हुई प्रगति की अगुवाई करने वाले इस्पात और सीमेंट क्षेत्र ने वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में क्रमशः 15.9 फीसदी और 12.2 फीसदी की बढ़ोतरी हासिल की। बुनियादी ढांचा क्षेत्र, निर्माण से जुड़ी इन दो आवश्यक चीजों की मांग का एक प्रमुख कारक बना हुआ है। यहां किफायती आवास, शहरी नवीनीकरण और परिवहन नेटवर्क सहित परिव्यय को बढ़ावा देने के सरकार के प्रयास साफ तौर पर एक अनुकूल माहौल पैदा कर रहे हैं। लेखा महानियंत्रक के आंकड़ों से यह पता चलता है कि जून महीने में केंद्र द्वारा किया गया कुल पूंजीगत व्यय साल-दर-साल आधार पर 62 फीसदी से ज्यादा और पिछले महीने से लगभग 24 फीसदी बढ़कर 1.10 लाख करोड़ रुपये हो गया।
बिजली, जो मूलभूत उद्योगों के सूचकांक का पांचवां हिस्सा है, ने भी चक्रवाती तूफान के बावजूद चार महीनों में अपनी सबसे मजबूत वृद्धि दर्ज की। चक्रवाती तूफान ने अत्यधिक औद्योगिकीकृत गुजरात को सबसे ज्यादा प्रभावित किया, जिससे मांग में कमी आई। जून में कोयला उत्पादन भी 9.8 फीसदी बढ़ा, जिससे पहली तिमाही का कुल उत्पादन 8.7 फीसदी बढ़ गया। और मंगलवार को जारी आधिकारिक आंकड़ों से यह पता चला है कि जुलाई में यह उत्पादन 14 फीसदी से ज्यादा बढ़ गया। इस तथ्य के मद्देनजर कि कोयले की मांग बिजली क्षेत्र से परे धातु निर्माण और प्रक्रिया उद्योगों सहित अन्य औद्योगिक क्षेत्रों तक फैली हुई है जहां इसका इस्तेमाल भट्टियों और बॉयलरों में किया जाता है, यह एक और सकारात्मक संकेत है।
निश्चित रूप से, आठ मूलभूत क्षेत्रों के अन्य आंकड़े कई चिंताओं की ओर इशारा करते हैं। आत्मनिर्भरता की तमाम चर्चाओं के बावजूद, महत्वपूर्ण तेल क्षेत्र में कुछ हद तक आजादी हासिल करने के भारत के प्रयासों का सार्थक नतीजा निकलना अभी बाकी है। देश अभी भी ईंधन की अपनी समग्र जरूरतों के लिए कच्चे तेल के आयात पर बहुत ज्यादा निर्भर है। यह इस तथ्य से सबसे अच्छी तरह परिलक्षित होता है कि कच्चे तेल के उत्पादन में लगातार 13वें महीने मंदी रही और इसमें 0.6 फीसदी की गिरावट आई। रिफाइनरी उत्पादों, जिनका सूचकांक में सबसे अधिक 28 फीसदी का भार है, के साथ कच्चे तेल के उत्पादन में क्रमिक गिरावट भी दर्ज की गई जो नियामक विसंगतियों की वजह से समग्र तेल क्षेत्र को पेश आनेवाली दिक्कतों को रेखांकित करती है। नीति निर्माताओं के सामने यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है कि नीतिगत माहौल अनुकूल बना रहे, खासकर ऐसे वक्त में जब वैश्विक मांग निहायत ही अनिश्चित बनी हुई है।
