संवेदनशील सीमाई राज्य में जातीय हिंसा के मामले में ‘सुस्त’ जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर सरकार की खिंचाई की है। हिंसा की आग 3 मई को भड़की थी और अब भी बुझी नहीं है। हिंसा के संबंध में दर्ज हुईं लगभग 6500 प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) के संदर्भ में, ‘छिटपुट’ गिरफ्तारियों पर उंगली उठाते हुए, शीर्ष अदालत ने पुलिस कार्रवाई में प्रगति पर ज्यादा ब्योरे मांगे हैं, और 7 अगस्त को अगली सुनवाई के दौरान मणिपुर के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया है। इन मामलों की जांच करने की राज्य पुलिस की क्षमता पर सवाल उठाते हुए, अदालत ने उल्लेख किया कि वहां भीड़ की हिंसा के सामने कानून और संवैधानिक मशीनरी पूरी तरह नाकाम हैं।
दो महिलाओं, जिन्हें भीड़ ने निर्वस्त्र घुमाया और बलात्कार किया, ने पुलिस और सीबीआई की जांच पर भरोसा न होने की बात कही है। यह इन महिलाओं के साथ हुई भयावह हिंसा के एक वीडियो क्लिप का प्रसार ही था, जिसने हफ्तों तक चली बेलगाम हिंसा और मणिपुर सरकार के बेशर्मी भरे पक्षपात के बाद, सुप्रीम कोर्ट को दखल देने के लिए मजबूर किया। ऐसे और भी मामले सामने आये हैं, और शीर्ष अदालत ने अब अपने द्वारा जांच गठित करने का प्रस्ताव रखा है। देश की सबसे ऊंची अदालत द्वारा इस निंदा के बाद मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के पास अब कोई बहाना नहीं बचा है, लेकिन वह बगैर किसी जवाबदेही के अब भी पद पर बने हुए हैं क्योंकि भाजपा अपने राजनीतिक कारणों से उन्हें बचाने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ है।
भारत में सांप्रदायिक संघर्षों का इतिहास बताता है कि लंबे समय तक चलने वाली भीड़ हिंसा राज्य की मौन सहमति से ही संभव है। मणिपुर के मामले में, यह कुछ ज्यादा ही साफ है। गड़बड़ी के शुरुआती संकेत मिलते ही उसे रोकने के लिए त्वरित पुलिस कार्रवाई की तुलना में गुनहगारों को सजा दिला पाना एक उबाऊ और थकाऊ प्रक्रिया है। मणिपुर में, तनाव बढ़ने से रोकने के लिए त्वरित कार्रवाई तो दूर की बात, आरोप है कि भीड़ की हिंसा में पुलिस ही मददगार बनी। अपना फर्ज निभाने में नाकाम रहने वाले या भीड़ से सांठ-गांठ करने वाले पुलिस कर्मियों को पूरी सख्ती से कानून के सामने पेश करना चाहिए। साथ ही, देश के राजनीतिक नेतृत्व के लिए भी एक कड़ा संदेश होना चाहिए।
अफसोस की बात है कि सत्तारूढ़ भाजपा ने इसकी तुलना विपक्ष-शासित राज्यों में अपराध की पृथक घटनाओं से करके मणिपुर की स्थिति की गंभीरता से इनकार किया है। अदालत ने मणिपुर में स्थिति की गंभीरता को रेखांकित करते हुए इस तरह की तुलना को गलत बताया है। विपक्षी समूह ‘इंडिया’ के 21 नेताओं, जिन्होंने राज्य का दौरा किया, का बुधवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मिलने का कार्यक्रम है। विपक्ष को राज्यसभा में चर्चा के लिए भी राजी होना चाहिए, भले ही प्रधानमंत्री के चर्चा-पूर्व बयान की उसकी मांग पूरी न हो। यह ‘इंडिया’ के लिए अपने तथ्यान्वेषण को देश के सामने रखने का मौका होगा।
