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विपक्षी गठबंधन में एका की बाधाएं
  • 151000003 - VAISHNAVI DWIVEDI 0 0
    31 Jul 2023 23:23 PM



बेंगलुरु से दिल्ली तक विपक्ष और भाजपा नेतृत्व वाले गठबंधन की मोर्चाबंदी की पहली गूंज संसद के सत्र में सुनाई पड़ रही है। वस्तुतः यह लोकसभा चुनाव के राजनीतिक युद्ध की पूर्व प्रतिध्वनि है। वैसे विपक्ष द्वारा ‘इंडिया’ यानी इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस नाम रखने के साथ यूपीए की अंत्येष्टि हो गई। बेंगलुरु बैठक के पूर्व सुर्खियां यही थीं कि 16 दलों का समूह बढ़कर 26 का हो गया। ऐसा लग रहा था कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा पीछे रह गई है। 26 के मुकाबले 38 दलों को इकट्ठा कर भाजपा ने विपक्ष के इस प्रचार का जवाब दे दिया कि उसके साथ कोई दल आना नहीं चाहता। वैसे पटना बैठक के तुरंत बाद महाराष्ट्र में राकांपा विधायकों के बहुमत का शरद पवार से अलग होकर शिंदे सरकार में शामिल होना यह बताने के लिए पर्याप्त था कि विपक्ष जैसी तस्वीर बना रहा है, जमीनी स्थिति वैसी नहीं है। आम चुनाव की दृष्टि से दोनों खेमों की मोर्चाबंदी को कैसे देखा जाए।

निःसंदेह, लंबी कोशिश के बाद भाजपा विरोधियों ने एक गठबंधन बना लिया। इसके पीछे विचार-विमर्श की प्रतिक्रियाओं की भी झलक मिली। बैठक के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि अगली बैठक मुंबई में होगी, जहां एक समन्वय समिति बनाई जाएगी एवं संयोजक का नाम तय होगा। बेंगलुरु में ऐसी कई समितियों के गठन की भी बात हुई, जो रणनीति से लेकर संघर्ष के मुद्दे और दिशा तय करेंगी। इससे आभास होता है कि जो दल सामने दिख रहे हैं, उनके अलावा अनेक शक्तियां पीछे सक्रिय हैं। ताकि यह कोशिश बिखरे नहीं। हमने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान ऐसी शक्तियों और व्यक्तियों को सक्रिय देखा भी है। यह बताने की आवश्यकता नहीं कि भारत सहित विश्व में ऐसे लोगों, समूहों, संगठनों की बड़ी संख्या है। जो हर हाल में मोदी सरकार को हटाना चाहते हैं। इनमें कुछ ऐसे हैं जिनके निहित स्वार्थ इस सरकार के आने के बाद पूरे नहीं हुए। एक बड़ा वर्ग भाजपा और आरएसएस को लेकर वितृष्णा पाले हुए है। शाहीन बाग से लेकर कृषि कानून विरोधी आंदोलन में मोदी, भाजपा तथा संघ विरोधी दुष्प्रचार अभियान में हम इनकी पहुंच और शक्ति का अनुभव कर चुके हैं।

देश-विदेश के गैर राजनीतिक संगठन, मुस्लिम समूह, एनजीओ, एक्टिविस्ट, बुद्धिजीवी, अर्थशास्त्री, पूंजीपति आदि सब लंबे समय से मोदी विरोधियों को एकजुट करने में लगे हैं। वे अपने इकोसिस्टम की ताकत से ऐसे मुद्दे उछालते हैं, जिनसे भाजपा को घेरा जाए। मणिपुर में कुकी ईसाइयों बनाम मैती हिंदुओं के संघर्ष को लेकर भारत सहित दुनिया भर में निर्मित की गई एकपक्षीय स्थिति इसका प्रमाण है। एकपक्षीय तस्वीर के कारण भारत सरकार मैती हिंदुओं का भी पक्ष रखने की जगह रक्षात्मक रुख अपनाने को विवश है। साफ है भाजपा को 2014 और 2019 के मुकाबले आगामी लोकसभा चुनाव में ज्यादा बहुआयामी चुनौती मिलने वाली है। इतना सब होने के बावजूद अगर गठबंधन के नाम तक पर पहले से सर्वसम्मति नहीं बनी और विपक्ष की एकजुटता के लिए सबसे ज्यादा कोशिश करने वाले नीतीश कुमार ही पत्रकार वार्ता में उपस्थित नहीं रहे तो इसे एकजुटता कैसे कहा जा सकता है। नीतीश ही नहीं लालू यादव भी उसमें नहीं दिखे। नीतीश की ओर से हवाई जहाज के समय का हवाला दिया गया, जबकि वह चार्टर उड़ान से गए थे।

कांग्रेस ने जिस तरह पूरी बैठक पर वर्चस्व जमाया, नीतीश का स्वभाव उसे झेलने वाला नहीं। कहा गया कि ‘इंडिया’ नाम का सुझाव राहुल गांधी द्वारा दिया गया। शायद इसके पीछे वही लोग हैं, जो राहुल को मोदी के समानांतर राष्ट्रीय नेता बनाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। कई नेता इस नाम से सहमत नहीं थे, क्योंकि दलों का गठबंधन स्वयं को ‘इंडिया’ कहे, यह सबके गले नहीं उतर सकता। इसके पीछे भाजपा के राष्ट्रवाद से मुकाबले का सोच हो सकता है, किंतु विपक्ष के कई नेताओं का मानना है कि उसके लिए दूसरे रास्ते हो सकते है। दिल्ली में राजग की बैठक के बाद प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन तथा पटना से बेंगलुरु तक विपक्षी नेताओं के वक्तव्यों की तुलना करिए। विपक्ष का फोकस भाजपा की विचारधारा तथा मोदी सरकार की आलोचना तक सीमित है। इसमें कोई समस्या नहीं, लेकिन सरकार के समानांतर आपकी विचारधारा, भारतीय राष्ट्र की कल्पना, विकास की अवधारणा की वैकल्पिक रूपरेखा की झलक भी वक्तव्यों में आनी चाहिए।

मोदी के भाषण में राष्ट्र के संपूर्ण विकास और उत्थान की अवधारणा थी। उन्होंने सामाजिक न्याय से लेकर गरीबों, महिलाओं के कल्याण और सर्वांगीण विकास के कार्यक्रमों की रूपरेखा रखी। हिमाचल और कर्नाटक में पराजित होने के बावजूद भाजपा के मतों में कमी न आना इसका प्रमाण है कि विचारधारा के स्तर पर उसके पक्ष में समर्थन घनीभूत हुआ है। सेक्युलरिज्म, लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे अमूर्त विषयों और नारों से मोदी या भाजपा को पराजित करना आसान नहीं होगा। यह ध्यान रहे कि माकपा के सीताराम येचुरी ने साफ कहा कि तृणमूल कांग्रेस से उनकी लड़ाई जारी रहेगी। ममता पहले ही वाममोर्चा के साथ नहीं जाने का बयान दे चुकी हैं। यह दर्शाता है कि कई राज्यों में भाजपा या राजग के विरुद्ध संयुक्त उम्मीदवार दूर की कौड़ी है। राजग में अभी तक पूरी एकजुटता है। बैठक के बाद असंतोष का एक स्वर भी नहीं उभरा। यह भी ध्यान रहे कि तेलंगाना, आंध्र और ओडिशा की सत्तारूढ़ पार्टियां विपक्ष के मोर्चे से अलग हैं। यदि विपक्षी गठबंधन के दलों में वैचारिक स्पष्टता नहीं होगी और सभी राज्यों में गठबंधन भी नहीं होगा तथा कुछ दल अकेले लड़ेंगे तो विपक्षी एकजुटता कैसे होगी।



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