नागपुर मेरे साथ बंदूक की नोक पर महिला ने शिवसेना नेता पर लगाया यौन उत्पीड़न करने का आरोप धार दोस्त ने बात करना किया बंद, तो नाराज क्लासमेट ने गले पर चाकू से वार कर ले ली जान हैदरनगर बिजली विभाग की लापरवाही ने ली पिता-पुत्र की जान, बाइक समेत जिंदा जले; ग्रामीणों में आक्रोश गोपेश्वर अब पांच गांवों से संचालित होगी रुद्रनाथ धाम की यात्रा, सिर्फ 140 तीर्थयात्री ही रोजाना जा सकेंगे अमृतसर अमृतसर में बड़ी आतंकी साजिश का भंडाफोड़, 6 पिस्तौल सहित तीन तस्कर गिरफ्तार; ड्रोन के जरिए पाकिस्तान ने गिराए थे हथियार नवगछिया नवगछिया में व्यवसायी की गोली मारकर हत्या, इलाके में फैली सनसनी; CCTV फुटेज खंगाल रही पुलिस चंपारण झमाझम बारिश से गन्ने की फसल को मिली संजीवनी, धान की बुआई में भी होगा जबरदस्त फायदा पहलगाम भारत के डर से पाकिस्तान ने खटखटाया संयुक्त राष्ट्र का दरवाजा, UNSC आज करेगा आपात बैठक
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खतरनाक सुधार
  • 151000003 - VAISHNAVI DWIVEDI 0 0
    31 Jul 2023 23:23 PM



इजराइल के दक्षिणपंथी प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने सोमवार को एक विधायी जीत हासिल की। उनके गठबंधन ने उनकी न्यायिक सुधार योजना के एक अहम हिस्से को नेसेट (इजराइली संसद) में पारित कर दिया। लेकिन यह भारी कीमत पर हुआ है। विवादास्पद विधेयक शून्य के मुकाबले नेतन्याहू के 64 गठबंधन सांसदों के समर्थन से पारित हुआ, जबकि विपक्ष ने मतदान का बहिष्कार किया और हजारों लोगों ने संसद के बाहर विरोध प्रदर्शन किया। दक्षिणपंथी और अति-पुरातनपंथी पार्टियों के उनके गठबंधन का कहना है कि यह विधान (जो सरकार के ‘अनुचित’ निर्णयों की समीक्षा करने की सुप्रीम कोर्ट की शक्ति को छीन लेगा) सरकार और न्यायपालिका के बीच संतुलन लेकर आयेगा।

इजराइल की पूरी राजनीति दक्षिणपंथी रास्ते पर चली गयी है। यह सरकारों (अक्सर जिनका नेतृत्व धुर-दक्षिणपंथी पार्टियों के समर्थन से दक्षिणपंथी या मध्यमार्गी-दक्षिणपंथी पार्टियां करती हैं) को न्यायपालिका के साथ असहमति की स्थिति में रखता है। नेतन्याहू के सहयोगी इस परस्पर विरोध को न्यायिक सुधार के जरिये ठीक करना चाहते हैं। लेकिन मसला यह है कि न्यायपालिका (सरकार पर एकमात्र शक्तिशाली संवैधानिक लगाम) को सरकारी नियंत्रण के अधीन लाये जाने से इजराइल की राज्य व्यवस्था में मौजूद संस्थानिक संतुलन का क्षरण हो सकता है, खासकर जब धुर-दक्षिणपंथी पार्टियां चढ़ान पर हैं। इसी की वजह से कामगारों, पेशेवरों और रिजर्व सैनिकों (जो इजराइली सेना की रीढ़ हैं) का विरोध फूट पड़ा।

इनका आरोप है कि नेतन्याहू लोकतंत्र को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल धुर-दक्षिणपंथी पार्टियों के लिए, सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों में कटौती करना इजराइल के आमूल-चूल बदलाव और फिलिस्तीनियों की पराधीनता में तेजी लाने का स्वाभाविक तरीका है। इतमान बेन-गिवीर और बेज़लेल स्मोत्रिच जैसे मंत्री कब्जा किये गये फिलिस्तीनी इलाकों में ज्यादा यहूदी बस्तियां, और यहूदी राज्य के ‘गद्दार’ अरब अल्पसंख्यकों पर कार्रवाई चाहते हैं। नये विधान के साथ, सरकार की कार्रवाइयों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस आधार पर निरस्त नहीं किया जा सकता कि वे ‘अनुचित’ थीं। इसके अलावा, इस न्यायिक और राजनीतिक संकट को उस बड़े संकट से अलग करके नहीं देखा जा सकता जिससे इजराइल जूझ रहा है।

भले ही पश्चिम में इजराइल का ‘मध्य पूर्व के इकलौते लोकतंत्र’ के रूप में गुणगान किया गया है, लेकिन वहां दो प्रणालियां हैं – एक अपने नागरिकों के लिए और दूसरा उन लोगों के लिए जो कब्जा किये गये और छीने गये इलाकों, वेस्ट बैंक और पूर्वी यरूशलम में रहते हैं। न्यायिक सुधार योजना ने इस मिथक को तोड़ दिया है कि फिलिस्तीन पर इजराइल का जो भी क्रूर कब्जा हो, उसकी लोकतांत्रिक व्यवस्था की हिफाजत की जायेगी। यह संयोग नहीं है कि न्यायिक सुधार के सबसे बड़े समर्थक, कब्जे के सबसे बड़े पैरोकार भी हैं। धुर-दक्षिणपंथी इजराइल को एक सत्तावादी धर्मतंत्र में बदलना चाहते हैं, जिसमें देश के भीतर बहुत थोड़े नियंत्रण एवं संतुलन (चेक एंड बैलेंस) और कब्जे वाली जमीन का बेलगाम विस्तार शामिल है। लेकिन इस योजना को आगे बढ़ाये जाने से इजराइल की दरारें भी सामने आ गयी हैं, जिसने देश को उसके सबसे बड़े संकट में धकेल दिया है। नेतन्याहू ने भले ही नेसेट के जरिये इस विधेयक को आगे बढ़ा लिया हो, लेकिन उन्होंने इजराइल को कमजोर बना दिया है।



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