यह हैरानी की बात है। कि विपक्षी गठबंधन आइएनडीआइए की ओर से पेश अविश्वास प्रस्ताव को लोकसभा में अनुमति मिल जाने के बाद भी सदन को नहीं चलने दिया जा रहा है। यह हठधर्मिता की पराकाष्ठा है और इसका प्रमाण भी कि विपक्ष ने ठान लिया है। कि वह संसद के इस सत्र में कोई काम नहीं होने देगा। उसके अड़ियल रवैये से यह साफ है। कि वह न तो मणिपुर को लेकर गंभीर है और न ही संसदीय कामकाज में उसकी कोई दिलचस्पी है। वास्तव में इसीलिए उसने संसद में हंगामा करने के लिए इस बहाने की आड़ ली कि मणिपुर पर चर्चा तभी होने दी जाएगी, जब प्रधानमंत्री बोलेंगे। समझना कठिन है कि जब उसने अविश्वास प्रस्ताव के जरिये अपने इस उद्देश्य को हासिल कर लिया। तब फिर उसके लिए संसद में हंगामा करना आवश्यक क्यों है।
आइएनडीआइए के घटक दल भले ही यह जताने की चेष्टा कर रहे हों कि वे मणिपुर के साथ देश की अन्य समस्याओं की चिंता में दुबले हुए जा रहे हैं। लेकिन सच यह है कि वे नितांत अगंभीर हैं और अतार्किक रवैया अपनाए हुए हैं। उनकी अगंभीरता का प्रमाण इससे मिलता है कि वे नारे लिखी अपनी तख्तियां लहराने के लिए अतिरिक्त परिश्रम कर रहे हैं। कोई भी समझ सकता है कि उन्होंने संसद में काले कपड़ों में दिखने के लिए भी अपनी ऊर्जा खपाई होगी। काले कपड़े एवं झंडे विरोध का प्रतीक माने जाते हैं और विपक्षी नेताओं को ऐसे प्रतीक अपनाने का पूरा अधिकार है। लेकिन आखिर जनप्रतिनिधि के रूप में संसद में उनका काम अपने काले कपड़ों की नुमाइश करना है। या फिर उन विषयों पर बहस करना।
जिन्हें लेकर वे अपनी चिंता जताने में लगे हुए हैं। आखिर यह कैसी चिंता है कि चर्चा करने के बजाय नारेबाजी पर मेहनत की जा रही है। विपक्षी दलों के विचित्र व्यवहार को देखते हुए देश की जनता तो ऐसे ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचने को विवश होगी कि वे हंगामा करने और संसद न चलने देने के लिए नित-नए बहाने खोजने में लगे हुए हैं। यह हास्यास्पद है कि विपक्षी दल एक ओर राष्ट्रीय हितों की रक्षा की दुहाई दे रहे और दूसरी ओर संसद में राष्ट्रीय अथवा आम जनता से जुड़े किसी विषय पर चर्चा भी नहीं होने दे रहे। यदि वे यह मानकर चल रहे हैं। कि जनता को यह सब समझ नहीं आ रहा होगा तो इसका मतलब है कि वे उसे बिल्कुल नादान मान बैठे हैं। जनता सब देख भी रही है और समझ भी कि कौन संसद न चलने देने पर आमादा है। यदि आइएनडीआइए के सदस्य अपने गठबंधन को इंडिया नाम देकर यह मान बैठे हैं। कि वे भारत का पर्याय बन गए हैं, तो इसे मुगालते के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता। देश की जनता को ऐसे मुगालते दूर करना अच्छे से आता है।
