यूपी के वाराणसी जिले के चौबेपुर में सुपरिचित लेखक डॉ अंबिका प्रसाद गौड़ की औपन्यासिक कृति जयतु जयतु लंकेश के आज पराड़कर स्मृति भवन में लोकार्पण पर विद्वानों ने कहा कि यह उपन्यास रावण को अनावश्यक रूप से महिमामंडित करने का प्रयास नहीं है अपितु उन गलतियों से सीख लेने का एक धरातल है जो व्यक्ति,समाज और राष्ट्र को पतित होने से रोकता है।संयम,धैर्य और संतुलित रहते हुए किस प्रकार वांछित परिणाम की प्राप्ति की जा सकती है तथा चारित्रिक दोष से मुक्त रह कर किस प्रकार आत्मिक गुण धर्म से सकारात्मक वृत्ति से अपेक्षित परिणाम पाये जा सकते हैं,यह ग्रंथ उसी प्रक्रिया का जीवंत रूप है।
साहित्यकार डॉ जितेंद्र नाथ मिश्र ने कहा कि डॉ अंबिका प्रसाद गौड़ ने इस उपन्यास द्वारा जिस प्रकार रावण को मुखर किया है, उससे अतीत के उस मौन को भंग कर दिया है, जिस पर अभी तक लोगों ने पूर्ण विराम लगा हुआ माना था। समीक्षक डॉ रामसुधार सिंह ने कहा कि लेखक ने वाल्मीकि रचित रामायण और तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस के अदृश्य तथा अबोले कथ्य को दृश्यमान कर दिया है। अबतक राम के दृष्टिकोण से कही जाती कथा के विपरीत रावण के पक्ष में बोलने का यह अनूठा प्रयास है। प्रोफेसर श्रद्धानंद ने कहा कि लंकेश की वैचारिक अवधारणा यह उपन्यास व्यक्त करता है। रावण के उज्ज्वल पक्ष को उठाया गया है।यह मनोविश्लेषणात्मक उपन्यास है। कथा लेखिका डॉ मुक्ता ने कहा कि इस उपन्यास में कल्पना, इतिहास और मिथक का संगम है।राम के वैशिष्ट्य को बनाये रखते हुए रावण को प्रस्तुत किया गया है। उपन्यास के संबंध में मंतव्य रखते हुए डॉ गौड़ ने स्वागत, पत्रकार व साहित्यकार डॉ अत्रि भारद्वाज ने संचालन और साहित्यकार डॉ देवेन्द्र कुमार सिंह ने आभार जताया।
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