शीर्षक - महादेव
विधा - कविता
तुमको मैं क्या दे पाऊँगा क्या मैं कर दूं तुमको अर्पण।
सबकी रग रग में बसते हो भोले तुमको पूर्ण समर्पण।।
मैं तो लघु कंकड़ सा भोले हरपल तेरी छाया में पलता।
सब तेरी इच्छा से उगता है व तेरी इच्छा से ही ढलता।।
तुम हो अगम अगोचर भोले तेरी महिमा कोई न जाने।
नर-नारायण, सुर-असुर सब आज्ञा तेरी हर पल माने।।
तुमको भोले सब ही जाने साक्षात हो काल का दर्पण।
सबकी रग रग में बसते हो भोले तुमको पूर्ण समर्पण।।
शिवजी तुम तो निराकार हो कोई क्या वर्णित कर पाए।
जैसे गूंगा गुड को खाए फिर कैसे उसका स्वाद बताए।।
सदा गंगा तेरे सर से बहती रहे पर्वत बीच तुम्हारा डेरा।
जहां-जहां भोले तुम रहते गण, नंदी करते वही बसेरा।।
जब तेरा साथ मिला है भोले सब ही हो जाएंगे तर्पण।
सबकी रग रग में बसते हो भोले तुमको पूर्ण समर्पण।।
देवों का देव कहे कोई महाकाल कोई तुमको कहता।
मेरा मन तो हरपल भोले शिव रूपी नदी में ही बहता।।
कितनी और करूं मैं प्रतीक्षा भोले मुझको समझाओ।
तुम बिन अखियाँ तरस गई हैं अब तो दर्शन दे जाओ।।
सारी दुनिया ही करती है शिव रूपी पत्थर का घर्षण।
सबकी रग रग में बसते हो भोले तुमको पूर्ण समर्पण।।
नाम - विक्रांत चम्बली
पता - ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
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फास्ट न्यूज इंडिया रिपोर्टिंग इंचार्ज गिरार राजपालसिंह की रिपोर्ट 151165292