महंगाई बीते 8 सालों में 7. 8% पर रही हो सकता है, कि आपके शॉपिंग बास्केट में नमकीन बिस्कुट इत्यादि के एमआरपी नहीं बड़ी हो, ऐसा इसलिए नहीं है की रोजाना इस्तेमाल की वस्तुएं में एमआरपी बढ़ाने वाली कंपनियां लागत का बोझ खुद उठा रही हैं और उपभोक्ताओं को राहत दे रही हैं असल में वह दाम बढ़ाने की वजह वजन में कमी करके उपभोक्ताओं को एहसान जता रही हैं। एमआरपी ना बढ़ाने उपभोक्ताओं कोमहंगाई से अनजान रखते हैं ।इसलिए खपत पर असर नहीं होता। यह एक तरह की रणनीति के तहत जनता को बेवकूफ बनाकर लूटा जाता है। सरकार बेवकूफ बना रही है और कंपनियां भी आम आदमी को लूट रही हैं ।जैसे
पहले की तरह ₹10 में मिलने वाला हल्दीराम भुजिया 55 ग्राम की जगह 42 ग्राम का रह गया है।
विम बार आज भी ₹10 का है ,मगर वजन 155 ग्राम से घट 135 ग्राम हो गया है।
यूआरएल ने लाइव बाय साबुन के ₹10 और ₹35 वाले पैक के बीच का एक नए पैक लांच किया है इस तरह से कंपनियां दाम ना बढ़ाकर वजन घटाकर महंगे दामों में बेच रही हैं जैसे यूरिया 50 किलोग्राम की बोरी 45 किलोग्राम के रूप में मार्केट में उपलब्ध है मेहनगर रमेश चंद शर्मा की रिपोर्ट 151119163