पत्थर के ख़ुदा वहाँ भी पाए | कैफ़ी आज़मी
पत्थर के ख़ुदा वहाँ भी पाए | कैफ़ी आज़मी
पत्थर के ख़ुदा वहाँ भी पाए ।
हम चाँद से आज लौट आए ।
दीवारें तो हर तरफ़ खड़ी हैं
क्या हो गया मेहरबान साए ।
जंगल की हवाएँ आ रही हैं
काग़ज़ का ये शहर उड़ न जाए ।
लैला ने नया जन्म लिया है
है क़ैस[1] कोई जो दिल लगाए ।
है आज ज़मीं का गुस्ले-सेहत[2]
जिस दिल में हो जितना ख़ून लाए ।
सहरा-सहरा[3] लहू के ख़ेमे
फिए प्यासे लबे-फ़रात[4] आए ।
शब्दार्थ
1 मजनूँ
2 स्वस्थ होने के बाद पहला स्नान
3 हर रेगिस्तान में
4 फ़रात नदी के तट पर
आए ।
दीवारें तो हर तरफ़ खड़ी हैं
क्या हो गया मेहरबान साए ।
जंगल की हवाएँ आ रही हैं
काग़ज़ का ये शहर उड़ न जाए ।
लैला ने नया जन्म लिया है
है क़ैस[1] कोई जो दिल लगाए ।
है आज ज़मीं का गुस्ले-सेहत[2]
जिस दिल में हो जितना ख़ून लाए ।
सहरा-सहरा[3] लहू के ख़ेमे
फिए प्यासे लबे-फ़रात[4] आए ।
शब्दार्थ
1 मजनूँ
2 स्वस्थ होने के बाद पहला स्नान
3 हर रेगिस्तान में
4 फ़रात नदी के तट पर