EPaper SignIn

अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर[1] में भी आया न करो छूट जाने दो जो
  • 151143206 - RAKESH 0



अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर | कैफ़ी आज़मी

अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आया न करो
मुझ से बिखरे हुये गेसू नहीं देखे जाते
सुर्ख़ आँखों की क़सम काँपती पलकों की क़सम
थर-थराते हुये आँसू नहीं देखे जाते

अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर[1] में भी आया न करो
छूट जाने दो जो दामन-ए-वफ़ा छूट गया
क्यूँ ये लग़ज़ीदा ख़रामी[2]ये पशेमाँ नज़री[3]
तुम ने तोड़ा नहीं रिश्ता-ए-दिल टूट गया

अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आया न करो
मेरी आहों से ये रुख़सार[4] न कुम्हला जायें
ढूँढती होगी तुम्हें रस में नहाई हुई रात
जाओ कलियाँ न कहीं सेज की मुरझा जायें

अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आया न करो
मैं इस उजड़े हुये पहलू में बिठा लूँ न कहीं
लब-ए-शीरीं[5] का नमक आरिज़-ए-नमकीं[6]की मिठास
अपने तरसे हुये होंठों में चुरा लूँ न कहीं

शब्दार्थ
1 सपनों का आलिंगन
2 सोच-सोच के चलना
3 पछतावे से भरी निगाह
4 गाल
5 मधुर होंठ
6 नमकीन गाल


Subscriber

173790

No. of Visitors

FastMail

नई दिल्ली - केजरीवाल टिप्पणी मामले में विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी राजनयिक को किया तलब     नई दिल्ली - जेल से नहीं चलेगी दिल्ली सरकार, एलजी वीके सक्सेना ने कह दी बड़ी बात