बलिया : बरसात का मौसम शुरू होते ही सर्प दंश की घटनाएं बढ़ने लगीं हैं। सर्प दंश के मामले में लोग मरीज को अस्पताल ले जाने के बजाय झाड़ फूंक वाले स्थान पर लेकर जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तो ऐसे मामले रोज सुनने को मिल रहे हैं, जहां सर्प दंश के बाद लोग सीधे तौर पर झाड़-फूंक पर ही ज्यादा भरोसा करते हैं। अंत में पीड़ित मौत के मुंह में समा जाते हैं। तीन दिनों के अंदर बालक समेत तीन लोगों की जान चली गई। चिकित्सकीय व्यवस्था की याद तो उन्हें तब आती है, जब पीड़ित की हालत काबू करने लायक ही नहीं होती।
24 जुलाई : दोकटी क्षेत्र के दलकी नंबर एक में एक सप्ताह पहले सर्पदंश से आनंद गोंड के छह वर्षीय इकलौते बेटे की मौत हो गई। रात में सोते समय सर्प अचानक उसके ऊपर गिर गया था, इसके काटने से उसकी मौत हो गई। स्वजन झाड़फूंक के लिए अमवा के सती स्थान पर ले गए। यहां कोई फायदा नहीं होने पर जिला अस्पताल ले गए तो चिकित्सकों ने मृत घोषित कर दिया था।
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25 जुलाई : खेजुरी थाना क्षेत्र के हरिपुर गांव में दो दिन पहले सर्पदंश से राजकुमार शर्मा (18) की मौत हो गई। छत पर सोते समय सांप ने उसे डस लिया। जिला चिकित्सालय में उसकी हालत खराब होने पर स्वजन उसे मऊ स्थित एक अस्पताल में ले गये। रास्ते में चिलकहर के पास उसकी मौत हो गई।
केस 3 : नगरा थाना क्षेत्र के अतरौली करमौता गांव में रविवार की सुबह सर्पदंश से 28 वर्षीय सीमा पुत्री नंदलाल की मौत हो गई। वह टीनशेड के कमरे में सोई हुई थी। भोर में उसे किसी जहरीले सर्प ने डस लिया। स्वजन तत्काल उसे अमवां की सती मां के लेकर गए। वहां पर लाभ नहीं मिला। इसके बाद मऊ के एक निजी अस्पताल लेकर पहुंचे। चिकित्सकों ने मृत घोषित कर दिया।
---वर्जन--
सर्प दंश का एक मात्र चिकित्सीय उपचार ही है। मरीज के तत्काल अस्पताल पहुंच जाने से जान बच जाने की संभावना बढ़ जाती है। झाड़फूंक के चक्कर में हालात बिगड़ती ही चली जाती है। ऐसे में काफी बिलंब हो जाता है।
-डा. तोषिक सिंह, फिजीशियन, जिला अस्पताल।