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रांची - झारखंड में बालू कारोबारी ने खरीदी आठ एकड़ जमीन, कांग्रेस नेता से जुड़ा है तार; ईडी की जांच में कई और बड़े खुलासे     भिवानी - राजस्थान की युवती के साथ भागा भिवानी का आसीन, खफा परिजनों ने घर में लगा दी आग; इलाके में बिगड़ा माहौल     नई दिल्ली - Shubman Gill ने रचा इतिहास, भारत को दिलाई एजबेस्टन में रिकॉर्ड जीत; गावस्कर का 49 साल पुराना टूटा रिकॉर्ड     गुरुग्राम - तेज बारिश में हाईटेक शहर का बुरा हाल... जगह-जगह जलभराव; दिल्ली-जयपुर हाईवे पर लगा भीषण जाम     दुबई - हम पर जो हथियार उठाएगा, उसका हाथ काट देंगे, ईरान के बाद अब हूती विद्रोहियों पर इजरायल बरपाया कहर     तिरुवनंतपुरम - पाकिस्तानी जासूस ज्योति मल्होत्रा से केरल सरकार का निकला कनेक्शन, सरकारी पैसे से घूमने गई थी मुन्नार और कोच्चि     गोंडा - पूर्व कृषि मंत्री आनंद सिंह का निधन, ‘यूपी टाइगर’ के नाम से लोकप्रिय थे… 86 की उम्र में ली अंतिम सांस     नई दिल्ली - चीन को फिर लगेगी मिर्ची, दलाई लामा को भारत रत्न देने की तैयारी! 80 सांसदों ने प्रस्ताव पर किए हस्ताक्षर    
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बंगाल में ममता बनर्जी का प्रचंड जीत जाने कारण, किन नारों और मुद्दों से पुनः सत्‍ता में लौटी
  • 151000001 - PRABHAKAR DWIVEDI 0 0
    02 May 2021 16:49 PM



बंगाल विधानसभा चुनाव में जीत के लिए अपनी पूरी ताकत झोंकने के बावजूद भाजपा, ममता बनर्जी की अगुवाई वाली तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को सत्ता से हटाने का लक्ष्य हासिल नहीं कर पाई। विश्लेषकों की मानें तो ममता बनर्जी की तेजतर्रार छवि, बंगाली अस्मिता, महिलाओं और अल्पसंख्यकों का टीएमसी की ओर बड़ा झुकाव का सीधा फायदा तृणमूल को मिला। दरअसल, तृणमूल ने भाजपा की हिंदू वोटों की ध्रुवीकरण की कोशिश की काट करने के लिए 'बंगाल को चाहिए अपनी बेटी का नारा देकर महिला वोटरों को बड़े पैमाने पर अपने पाले में खींचा। ममता ने 50 महिला उम्मीदवारों को इसी रणनीति के तहत इस बार मैदान में भी उतारा था। इसके साथ ही दूसरे राज्यों से आने वाले भाजपा नेताओं के ममता बनर्जी पर सीधे हमले के मुद्दे को भुनाते हुए टीएमसी ने स्थानीय बनाम बाहरी का दांव खेलकर बांग्ला संस्कृति, बांग्ला भाषा और बंगाली अस्मिता के फैक्टर को हर जगह उभारा। पूरे चुनावी अभियान में बंगाल की बेटी और बाहरी का मुद्दा तृणमूल ने जोर-शोर से उठाया और यह दांव उसकी जीत में काफी काम आया। ममता लगातार अपनी चुनावी रैलियों में कहती दिखीं कि वह गुजरात के लोगों को बंगाल पर शासन नहीं करने देंगी। उनका इशारा मोदी व शाह पर था। साथ ही दूसरे राज्यों से यहां भाजपा के प्रचार के लिए आए नेताओं को वह लगातार बाहरी गुंडा कहकर संबोधित करतीं रहीं। इसके जरिए उन्होंने जमकर बंगाली कार्ड खेला। इससे खासकर महिलाओं के साथ बंगाली जनमानस का भरोसा जीतने में ममता कामयाब रहीं। इधर, भाजपा के पास न तो मुख्यमंत्री पद का कोई चेहरा था और ना ही कोई तेजतर्रार महिला नेता जो ममता को उनकी शैली में जवाब दे पाता। भाजपा की भारी-भरकम चुनावी मशीनरी का अकेले मुकाबला कर रहीं ममता का नंदीग्राम में चुनाव प्रचार के दौरान घायल हो जाना भी निर्णायक बातों में एक रहा। ममता बनर्जी ने चोट के बावजूद व्हील चेयर से ही जिस तरह से लगातार धुआंधार प्रचार किया और भाजपा नेतृत्व के खिलाफ आक्रामक हमला बोला, उससे यह छवि बनी कि घायल शेरनी ज्यादा मजबूती से मोर्चा संभाले हुए हैं। ऐसे में सहानुभूति की फैक्टर भी उनके पक्ष में गया। दूसरा, चुनाव प्रचार के दौरान ममता बनर्जी पर पीएम मोदी, अमित शाह जैसे बड़े केंद्रीय नेताओं का सीधा हमला भी उनके लिए सहानुभूति का काम कर गया। दीदी ओ दीदी, दो मई-दीदी गईं, दीदी की स्कूटी नंदीग्राम में गिर गई जैसे बयान भाजपा पर उल्टे पड़े। बंगाल भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष का ममता के लिए बरमूडा वाला बयान भी महिलाओं के बीच अच्छा संदेश नहीं गया। इन बयानों को भुनाने में टीएमसी ने कोई कसर नहीं छोड़ी। सहानुभूति कार्ड काम आया और यह ममता के पक्ष में गया। इसी का परिणाम है कि लगातार तीसरी बार ममता बंगाल की सत्ता पर काबिज होने पर कामयाबी हासिल की है।


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