अहमदाबाद. आधुनिकता की चकाचौंध के बीच देश में संभवत: गुजरात विद्यापीठ ही एक ऐसा इकलौता विश्वविद्यालय है, जहां आज भी कुलनायक से लेकर क्लर्क और विद्यार्थी तक खादी वस्त्र पहनते हैं। यहां उनके दिन की शुरुआत कमरों व होस्टल की सफाई से और खादी (खद्दर) बनाने के लिए सूत की कताई से होती है। यहां युवाओं को कंप्यूटर से लेकर प्रबंधन और भाषा से लेकर आत्मनिर्भर होने की शिक्षा दी जा रही है।
100 साल पहले 18 अक्टूबर 1920 को खुद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने गुजरात विद्यापीठ की नींव रखी थी। तब से लेकर अब तक यह विद्यापीठ गांधी विचारों को दुनिया में प्रसारित कर रही है।
इमारत की छतों पर उगाते हैं सब्जियां
यहां पढऩे वाले विद्यार्थी हर दिन अपने होस्टल के कमरों व परिसर की खुद सफाई करते हैं। खुद जो खादी वस्त्र पहनते हैं उस वस्त्र को तैयार करने के लिए चरखे पर सूत की कताई कर उसे तैयार करते हैं। पढऩे वाले प्रत्येक युवा को चरखा चलाना भी सिखाया जाता है। यहां विद्यार्थियों को प्राकृतिक खेती, पशुपालन, समाज सेवा के भी गुर सिखाए जाते हैं। शाकाहार भोजन ही खिलाया जाता है। यहां खाने के लिए किस प्रकार सब्जियां उगा सकते हैं, कैसे प्राकृतिक खाद तैयार कर बेहतर अनाज प्राप्त कर सकते हैं उसका भी प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके लिए परिसर में ही क्यारियां बनाई गई हैं। इमारत की छतों पर भी सब्जियां उगाई जाती हैं।
चरखा चलाते हुए रखते हैं अपनी मांगें
सत्य और अंहिसा व सादगी के गुर सिखाए जाते हैं। विद्यार्थियों को यदि कोई समस्या होती है तो वे चरखे पर सूत की कताई करते हुए अहिंसक तरीके से अपनी मांग रखते हैं।
यहां आकर सादगी के रंग में रंग जाते हैं विदेशी छात्र
गुजरात विद्यापीठ का वातावरण ही कुछ ऐसा है कि यहां शिक्षा लेने आने वाले विदेशी भी यहां आकर सादगी के रंग में रंग जाते हैं। विद्यापीठ गांधी विचारों की शिक्षा के सबसे बड़े केन्द्रों में से एक है। यहां अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, जापान सहित कई देशों के युवा व लोग गांधी विचारों की शिक्षा लेने आते हैं।