शाहजहांपुर। ये आज की बेटियां हैं। घर-परिवार की जिम्मेदारी के साथ ही सामाजिक कर्तव्यों के निर्वहन में भी पीछे नहीं हैं। ऐसी ही एक बेटी लवली सक्सेना हैं जो एक शिक्षित समाज के निर्माण में अपने हिस्से का छोटा मगर महती योगदान दे रही हैं। लवली अपने गांव के तमाम गरीब और शिक्षा से वंचित बच्चों के लिए मास्टर दीदी बन चुकी हैं। निगोही ब्लॉक के गुरगवां गांव की रहने वाली लवली सक्सेना (20) जीएफ कॉलेज में बीएससी तृतीय वर्ष की छात्रा हैं। लवली बताती हैं कि उनके पड़ोस में अक्तूबर 2020 में आग लगने से एक ही परिवार के कई लोगों की मौत हो गई थी। इस परिवार के दो मासूम बच्चे अनाथ हो गए थे। उनकी स्थिति देखकर लवली के मन में ऐसे बच्चों के लिए कुछ करने का ख्याल आया। लवली ने उन बच्चों के साथ ही गांव के कई अन्य गरीब बच्चों को शिक्षित कर समाज की मुख्यधारा में लाने की ठानी। इस सोच में उनका साथ दिया शाहजहांपुर के रहने वाले सामाजिक कार्यों में सक्रिय अमित श्रीवास्तव ने।अमित की मानवता वेलफेयर सोसाइटी से जुड़कर लवली ने आसपास के बच्चों को एकत्रित करना शुरू किया। ये बच्चे गांव के सरकारी स्कूल में रजिस्टर्ड तो थे, लेकिन पढ़ाई-लिखाई के नाम पर शून्य थे। लवली के मुताबिक उन्होंने अपने घर पर ही दस बच्चों से शुरुआत की थी। तीन महीने में करीब 40 बच्चे उनके पास शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। पहले इन बच्चों को अपना नाम लिखना भी नहीं आता था, लेकिन अब हिंदी-अंग्रेजी का भी अच्छा ज्ञान हो रहा है। बच्चे कक्षा एक से कक्षा छह तक हैं। बच्चों की कॉपी-किताब से लेकर स्टेशनरी तक की मदद लवली कर रही हैं। समाज के निर्माण में अपनी बिटिया के योगदान से प्राइवेट टीचर पिता रामशंकर सक्सेना और मां सीमा भी गर्व करते हैं।
अभिभावकों की काउंसिलिंग
लवली सक्सेना ने बताया कि वह दो बैच में बच्चों को पढ़ाती हैं। एक बैच में 20 बच्चे हैं। वह हर हफ्ते अभिभावकों से बातचीत जरूर करती हैं। अधिसंख्य अभिभावक ऐसे हैं जो बच्चों को पढ़ाना तो चाहते हैं, लेकिन उनके पास संसाधन नहीं हैं। लवली सभी को प्रेरित करती हैं कि वे अपने बच्चों को जरूर पढ़ाएं, ताकि वे पढ़-लिखकर समाज में अपना योगदान दे सकें। अभिभावक भी प्रेरित होकर बच्चों को नियमित क्लास में भेजते हैं।
संघर्ष के बावजूद समाजसेवा
लवली ने बताया कि वह नियमित तौर पर पढ़ाई के लिए शाहजहांपुर स्थित कॉलेज ऑटो-रिक्शा से आती-जाती हैं। रोजाना एक तरफ से 22-22 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद वापस गांव जाकर बच्चों को पढ़ाती हैं। लवली का कहना है कि थकान होने के बावजूद जब बच्चे कुछ अच्छा करके दिखाते हैं तो सारी थकान काफूर हो जाती है।