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कोलकाता - रामनवमी हिंसा मामले में EC ने जिला प्रशासन से मांगी रिपोर्ट, सीएम ममता ने बताया पूर्व नियोजित घटना     ऊना - हिमाचल प्रदेश में बसपा किसे देगी टिकट, आज लोस और विस की टिकटों पर मंथन करेगी पार्टी     भोपाल - बालाघाट के अति नक्‍सल प्रभावित केंद्र पर 100 प्रत‍िशत मतदान, 6 सीटों पर वोटिंग जारी     देहरादून - सात फेरों के बाद निभाई लोकतंत्र के महापर्व में भागीदारी, विदाई से पहले मतदान केंद्र पहुंचे दूल्‍हा-दुल्‍हन     हरियाणा - पति नायब के गुरु के लिए वोट मांगेंगी सुमन सैनी, करनाल की चुनावी रैली में होंगी शामिल     फतेहगढ़ - चुनावी बिगुल फूंकने सरहिंद पहुंचेंगे सीएम भगवंत मान, रैली के बाद प्रचार के सरगर्म होने की उम्मीद     पटना - पटना के दो विधानसभा क्षेत्र के लोग मुंगेर में डालेंगे वोट, बाहुबली की पत्नी और ललन सिंह हैं मैदान में     बिहार - अवध एक्सप्रेस से बाहर भेजे जा रहे 58 बच्चे रेस्क्यू, गुजरात में सूरत के मदरसे से जुड़ा कनेक्शन    

संयुक्त राष्ट्र महासभा
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हेनरी ऑलसेन, (एथिक्स एंड पब्लिक पॉलिसी सेंटर में वरिष्ठ फेलो)

संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) के ऐतिहासिक सत्र में मंगलवार को अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन (US President Joe Biden) और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Chinese President Xi Jinping) ने जलवायु परिवर्तन (Climate Change) से उपजी चुनौतियों से निपटने के लिए नए वादे किए। इन वादों में ऐसा कुछ नहीं है, जो हालात में वास्तविक बदलाव लाए। शी ने वादा किया कि चीन विदेशों में कोयले से चलने वाली नई बिजली परियोजनाओं के लिए वित्तीय मदद बंद करेगा। कार्बन डाइऑक्साइड का ज्यादा उत्सर्जन करने की वजह से कोयले को खराब ईंधन माना जाता है। चीन ने किसी भी नए कोयला संयंत्र से परहेज करने का संकल्प जरूर जताया है, लेकिन वह अपनी बढ़ती अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए देश में ही नए कोयला संयंत्रों का निर्माण कर रहा है। चीन का दूसरों को नए संयंत्र बनाने में मदद न करने का वादा उत्सर्जन कम करने की दिशा में खास मददगार नहीं होगा।

विकासशील देश अक्सर बिजली बनाने के लिए कोयले को प्रमुखता देते हैं, क्योंकि यह सस्ता ईंधन है। दुनिया के कई हिस्सों में कोयले की खानें हैं और उनका खनन आसान है। सौर व पवन ऊर्जा संयंत्रों के विपरीत कोयला चालित संयंत्रों से बिजली हर समय उत्पन्न की जा सकती है। उदाहरण के लिए कोयले की प्रचुर आपूर्ति के चलते चीन के वैश्विक आर्थिक शक्ति बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ। अमरीका के राष्ट्रपति बाइडन ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में मदद करने के वास्ते गरीब देशों को वित्तीय सहायता सालाना लगभग 11.4 बिलियन डॉलर प्रतिवर्ष करने का वादा किया है। यह राशि बहुत ज्यादा लग सकती है, लेकिन जरूरत के हिसाब से कुछ भी नहीं है। कहने की जरूरत नहीं कि विश्व नेताओं के वादों के पूरा न होने पर पर्यावरण कार्यकर्ता विलाप ही करेंगे। कठोर तथ्य यही है कि जलवायु परिवर्तन से गंभीरता से लडऩे की कोशिश कम या ज्यादा अवधि में जीवन-स्तर को कम करेगी। विकसित देश ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती में जितनी देरी करेंगे, उतनी ही तेजी से यह समस्या बढ़ेगी। विकासशील देशों को कुछ बोझ उठाने से रोकने से समस्या में और इजाफा होगा।

इस चुनौती से निपटने का यथार्थवादी दृष्टिकोण तकनीकी सफलताओं पर केंद्रित है। अक्षय ऊर्जा उत्पादन और भंडारण तुलनात्मक रूप से बहुत सस्ता और अधिक विश्वसनीय है। उच्च प्रौद्योगिकी के कारण हाल के वर्षों में पवन और सौर ऊर्जा उत्पादन की कीमतों में गिरावट आई है, लेकिन बैटरी की भी सीमाएं हैं। इसका मतलब यह है कि संयुक्त राष्ट्र में सुर्खियां बनने वाले भाषणों की तुलना में वैश्विक जलवायु परिवर्तन से लड़ाई के लिए बैटरी बनाने जैसी परियोजनाएं अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। असल में दुनिया को सच बताने से बचा जा रहा हैं। सारा ध्यान नौकरियों में वृद्धि और आर्थिक लाभ के अतिरंजित दावों को बढ़ावा देने पर है। जीवाश्म ईंधन संयंत्रों को बंद कर और करोड़ों परिवारों द्वारा इस्तेमाल की जा रही ऊर्जा खपत में बदलाव लाकर हालात बदले जा सकते हैं। हमारे लिए हर समय, हर चीज की असीमित आपूर्ति नहीं हो सकती है। जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए सामंजस्य की जरूरत होती है। जब तक इस तरफ ईमानदारी से ध्यान नहीं दिया जाएगा, परिवर्तन नहीं होने वाला।


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