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बाघों की गुर्राहट टकरा रही है
  • 151159993 - AMAR KANT 0



भोपाल। बाघों की गुर्राहट टकरा रही है। खुले जंगलों में विचरण करने वाले वनराज अब 'पगडंडियों' पर हैं। लड़-झगड़कर बाघों ने समझौता कर लिया है। वे चिडिय़ाघर के बाघों की तरह मिलकर रह रहे हैं। शावकों में भी 'जंगल का राजा' बनने की कोई होड़ नहीं है। ये सब सुनने में अजीब लग सकता है, मगर हालात जस के तस रहे तो कुछ साल बाद 'टाइगर स्टेट' के जंगलों की तस्वीर ऐसी ही हो जाए तो आश्चर्य की बात नहीं।

 

दरअसल, प्रदेश में जैसे-जैसे बाघ बढ़ते जा रहे हैं, वैसे-वैसे उनका बसेरा कम होता जा रहा है। शहरों का विस्तार और गांव के खेत जंगलों की हदों पर कब्जा कर रहे हैं। नतीजा यह है कि बाघ और अन्य जंगली जानवर आबादी वाले क्षेत्रों का रुख कर रहे हैं। इतना ही नहीं, बाघों में क्षेत्र संघर्ष (टेरेटोरियल फाइट) भी छिड़ गया है।


जानकारों के मुताबिक, एक बाघ का इलाका पांच सौ वर्ग किमी तक होता है और वह भी तब जबकि उसे भोजन, पानी और बाघिन उपलब्ध हो। बाघों के मौजूदा कुनबे के हिसाब से बाघों को इतनी जगह नहीं मिल रही है।


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