बालाघाट. कान्हा टायगर रिजर्व में विभागीय हाथियों का प्रबंधन का इतिहास रहा है। वर्तमान में 18 हाथी उपलब्ध है। इनमें से कुछ हाथियों को देश के विभिन्न हाथी मेलों से क्रय किया गया है और कुछ हाथियों की पैदाइश राष्ट्रीय उद्यान में ही हुई है। प्रांरभ से ही इन हाथियों का कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में प्रमुख उपयोग काष्ठ परिवहन व वन्यप्राणियों की सुरक्षा के लिए गश्ती कार्य में किया जाता रहा है। किन्तु कालान्तर में इनका उपयोग पर्यटन प्रबंधन में भी किया जाने लगा। हाथियों और उनके महावत, संलग्न कर्मचारियों के वर्ष पर्यन्त कठिन परिश्रम के फलस्वरुप हुई थकान, स्वास्थ्य विषयक कारणों से आराम की आवश्यकता होती है। जिसके लिए उन्हें एक सप्ताह का विश्राम दिया जाता है। जिसे हाथी पुर्नयौविनिकरण (रिजुविनेशन) सप्ताह कहा जाता है।
इस वर्ष हाथी रिजुविनेशन केम्प का शुभारंभ 23 सितम्बर को किया गया है और इसका समापन 29 सितम्बर को किया जाएगा। इस अवधि के दौरान 18 विभागीय हाथियों के स्वास्थ्य की विशेष देख-रेख की जाएगी। इस दौरान सभी महावत, चाराकटर विभागीय हाथियों को पूर्ण आराम के अतिरिक्त उनकी विशेष सेवा में रहेगें। हाथियों को अतिरिक्त खुराक विटामिन्स, मिनरल, फल-फूल आदि परोसे जाएंगे। इस अवसर पर हाथियों की सेवा में लगे समस्त महावतों, चाराकटरों का स्वास्थ्य परीक्षण भी किया जाएगा।
इस अवधि में प्रतिदिन प्रात: चाराकटर द्वारा हाथियों को जंगल से लाकर नहलाकर रिजुविनेशन केम्प में लाया जाता है और केम्प में हाथियों के पैर में नीम तेल, सिर में अरण्डी तेल की मालिश की जाती है। इसके बाद गन्ना, केला, मक्का, आम, अनानास, नारियल आदि खिलाकर जंगल में छोड़ा जाता है। दोपहर मेें हाथियों को जंगल से पुन: वापस लाकर व नहलाकर केम्प में लाया जाता है। इसके बाद केम्प में रोटी, गुड नारियल, पपीता खिलाकर उन्हें पुन: जंगल में छोड़ा जाता है। रिजुविनेशन केम्प के दौरान हाथियों के रक्त के नमूने जांच के लिए लिए जाजे हैँ। हाथियों के नाखूनों की ट्रिमिंग, दवा द्वारा पेट के कृमियों की सफाई, हाथी दांत की आवश्यतानुसार कटाई की जाती है। ऐसे केम्प के आयोजन से एक ओर जहां हाथियों में नई ऊर्जा का संचार होता है एवं मानसिक आराम मिलता है। वहीं इन सामाजिक प्राणियों को एक साथ समय बिताने का अनोखा अवसर प्राप्त होता है।