शदीद प्यास थी फिर भी छुआ न पानी को।
मैं देखता रहा दरिया तिरी रवानी को।
सियाह रात ने बेहाल कर दिया मुझ को।
कि तूल दे नहीं पाया किसी कहानी को।
सियासत के दांव पेंच में फंसकर आम आदमी जोकर बनकर रह गया है। दलों के दल दल में पल पल उतार चढ़ाव का नजारा देख रहा है देश सारा। बिगड़ती अर्थ ब्यवस्था खत्म होती समरसता, पांव पसारती नीचता और लोगों के दिल दिमाग में बढ़ती हीनता की भावना के कारण सद्भावना का विलोपन हो रहा है। नैतिकता दम तोड रही है। ।बैमनस्यता का बोलबाला बढ़ता जा रहा है। देश के परिवेश को विषाक्त करने के लिये बिदेशी ताकतों ने जिस तरह का संजाल फैलाया है आपस में ही किसान विल के नाम पर देश के लोगो को लडाया है वह अब खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुका है। कनाडा में बैठकर खालिस्तान देश का सपना देख रहे मुट्ठी भर आतंकी किसान आन्दोलन का सहारा लेकर देश को विघटित करने का सपना देख रहे हैं। और उनको ताकत दे रहे हैं इस देश में पल बढ़ रहे गद्दार सियासत बाज। लोकतंत्र के स्वतन्त्र आवरण में जनता ने जिनका चीरहरण कर दिया है वहीं सियासी महाभारत में दुर्योधन के तरह अट्टहास कर रहे हैं। भारतीय परचम को अपमानित करने वाला दीप सीद्धू जबसे पुलिस पकड़ में आया है गद्दारों में खलबली मच गयी है। किसान नेता राकेश टिकैत तथा केजरीवाल के सुर बदल गये है। खुफिया विभाग सतर्क है बडा खुलाशा हो सकता है। नेता की बातों में सच्चाई का अभाव होता है। झूठ बोलना तो इनका स्वभाव होता है। लोकतंत्र जब अपने असली रंग में आता है तो नेताओं की औकात का पता चल जाता है। गंदी राजनीति का यह भी एक परिणाम है खून सस्ता पानी का दाम है। सियासत की रंगत में ना डूबा इतना वीरों की शहादत भी नजर ना आए जरा सा याद कर लो अपने वायदे जुबान को अगर तुम्हें अपनी जुबां का कहा याद आए। सवाल गणतंत्र दिवस का नहीं था वह अपमान तो सारा देश पी गया। तकलीफ लोगों को तब हुई है जब गद्दार सियासत बाज फिर भी जी गया। रक्त बीज के तरह दिल्ली की सरहदों पर किसान आन्दोलन के नाम पर देश को बदनाम करने का खेल शुरु हो गया। मगर गांव हो या शहर हकीकत जानकर लोगों की सोच वर्तमान ब्यवस्यथा के साथ अपनी आस्था का समावेश कर लिया है। जैसे जैसे समय गुजर रहा है सच बाहर निकल रहा है। इस किसान आन्दोलन के पीछे खडी आशुरी शक्तियो के विनाश का खाका तैयार हो चुका है आने वाला समय नये इतिहास का प्रस्तावना लिख रहा है देखना है वक्त का सूरज क्या गुल खिलाता है। मुस्कुराता है या झंझावातों के तूफान में नव बिहान का संकेत दे जाता है। जन्हागीरगंज से राजेश की लेख 151111661