वाराणसी | नाम से अक्सर भ्रमित करने वाली दालमंडी में ऐसा नहीं कि ये कभी कोई दाल की मंडी रही हो, बल्कि यहां वाहनों को छोड़कर सारे सामान उपलब्ध हैं। यह पूर्वांचल का सबसे बड़ा बाजार है। इसकी खासियत हर धर्म-मजहब का रंग ओढ़ लेने की है। पूर्वांचल में कोई त्योहार दालमंडी की गलियों के बिना पूरे नहीं होते। चाहे वो दीवाली हो या ईद-बकरीद। इस बाजार की खूबी है कि यहां लाख रुपये भी कम पड़ जाएं और सौ रुपये में भी कुछ बचा लाएं।
दालमंडी पूर्वांचल के लिए किसी दिल्ली-मुंबई के बाजार से कम नहीं। शहर के बीचों-बीच बसा ये बाजार सुबह गुलजार होना शुरू होता है और देर रात तक दालमंडी की गलियां यूं ही रौशन रहती हैं। फैशनेबल कपडों से लेकर ज्वेलरी, जूते सैंडल की अनगिनत अस्थाई दुकानें हैं। अब वो दौर नहीं लेकिन हां, पूर्वांचल के सबसे बड़े सेवइयों के मार्केट के नाम से भी दालमंडी मशहूर है। यहां बारहों महीने सेवइयां मिलती हैं। मुंबई, कोलकाता जैसे शहरों से लोग यहां आकर सेवई लेकर जाते हैं। सेवई के अलावा इन दिनों अरब, ईरान, ओमान के रसीले खजूर भी इन गलियों की शान बने हुए हैं।
दूधफेनी से लेकर बाकरखानी का जायका एक बार जुबान को लग जाए तो भुलाए नहीं भूलता। ऐसा नहीं कि ये नजारा सिर्फ रमजान के दौरान ही दिखता है। त्योहार चाहे जो हो, गलियों का ये बाजार उसमें ही रंग जाता है। होली का त्योहार हो तो यहां कौन सा रंग गुलाल नहीं मिलता, किस ब्रांड की पिचकारी नहीं मिलती। दाल मंडी व्यापार मण्डल के संयोजक बदरुद्दीन बताते हैं की होम फर्निशिंग से लेकर लेटेस्ट फैशन के कपड़ों का पूरा बाजार, दुल्हन के साज-शृंगार, कॉस्मेटिक तक, पूर्वांचल का सबसे बड़ा कास्मेटिक बाजार दालमंडी ही है।
जितनी भीड़ किसी मॉल या शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में नहीं, उससे कहीं ज्यादा महिलाओं की भीड़ यहां के होलसेल कॉस्मेटिक्स की दुकान पर होती है। दाल मंडी व्यापार मंडल शकील अहमद जादूगर बताते हैं कि मोबाइल और इलेक्ट्रिकल गुड्स का भी ये बड़ा हब है। पूर्वांचल का सबसे बड़ा और सस्ता मार्केट होने की वजह से ही इन संकरी गलियों में साल के 350 दिन एक जैसा ही नजारा होता है। कृष्ण कुमार की रिपोर्ट 151115387